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२१. दीक्षा लेनार उमेदवारने तेना वालीओथी छानी रीते नसाडवो भगाडवो नहीं. उमेदवारनी शारीरिक संपत्ति तपासवी. कोईपण खोडवाळो न होय, करजदार के गुन्हेगार न होय, प्रकृति सारी होय, वैराग्यवान होय, तेना वर्तनमां कोई एब न होय तेवानी पसंदगी करवी. उमेदवारने एकाद वर्ष साथे राखी प्रकृति अने वैराग्यनो पाको परिचय कर्या पछी ज्यारे तेनी योग्यतानो निर्णय थाय त्यारे तेना वालीनी लेखीत आज्ञा मेळवी श्रीसंघ तथा संप्रदायना अग्रेसरनी संमति मेळव्या पछी दीक्षा आपवी. उमेदवार भाई के बाईनी उमर अति न्हानी नहीं अने अति मोटी नहीं किंतु योग्य उमर होवी जोईए. अयोग्य दीक्षा उपर समितिनो अंकुश रहेशे." १ पाटणमां त्यांना जैन संघे संवत १९८५ ना भादरवा वद ११ ने रविवारना रोज एवो ठराव करलो हतो के " हालनी परिस्थिति जोतां पाटणमां जेओने दीक्षा लेवी होय तेओए एक मास पहेलां जाहेर छापामां जाहेरात कर्या पछी तेनी योग्यतानी खात्री थतां संघनी संमति मेळवी दीक्षा आपी शकाशे. आनी विरुद्ध धर्तन करनार अथवा तेमां भाग लेनार संघना गुन्हेगार गणाशे." सन १९३२ ना एप्रिल मासमां भोयणीमां आचार्य श्री विजयलब्धसूरिना अध्यक्षपणा नीचे श्रीश्रमण संघनो मेळावडो थयो हतो तेमां पसार थयेला छ ठरावो पकी बीजा नंबरनो ठराव एवो हतो के, " पाटणमां दीक्षा माटे संघनी रजा विषे करवामां आवेलो ठराव शास्त्र विरूद्ध छे अने तेवो जिनाज्ञा विरुद्ध ठराव श्रीसंघनो नहीं पण केटलाक धर्म विरोधी अज्ञान युवानोनोज छे. आवो कोईपण ठराव श्री जैन संघ करी शके नहीं अने करे तो ते जैन संघ कहेवाय नहीं."२ संघनी संमतिनी आवश्यकता संबंधे आ प्रमाणे भिन्न मत छे एटले दीक्षा आपता पहेला संघनी संमति लेवानी आवश्यकता छ एम कही शकातुं नथी. १०. एकंदर हकीकत विचारमा लेतां अमने लागे छे के दीक्षा आपसा पहेला जे
गामनो उमेदवार होय ते गामना अगर जे गामे दीक्षा संघनी संमतिनी आवश्यक्ता आपवानी होय ते गामना संघनी संमति लेवी जोईए एम
आधारभूत अने सर्वसामान्य सिद्धांत तरीके गणाय एम कोई ठेकाणे ठरेलु जणातुं नयी. संघनी संमतिने माटे केटलाक ठेकाणे अपेक्षा रखाय छे ते चोरी छुपकीथी सगीरोने दीक्षा न अपाय एटला माटेज रखाय छे. तेथी जेमने पोताना संघ पुरतो तेवो बंदोबस्त राखवो योग्य जणाय ते भले राखे पण हालनी परिस्थिति प्रमाणे ते कायदा रूपे सर्व ठेकाणे फरजियात रीते रखावी शकाय एम नथी.
मथी.
१ जनप्रकाश, तारीख २४-४-३२, पान २७१. २ वीरशासन, तारीख २२.४-३२, पृष्ठ ४४४.
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