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वेपार, नोकरी विगेरे पण करे छे. तेमनामां दुनियानो त्याग करी संन्यास लेवान कई होतुं नथी..
हिंदु धर्म. १३. हिंदु धर्ममां श्रुति ( वेद ) अने स्मृति प्रमाणे ब्रह्म सत्य अने जगत् मिथ्या हिंदु धर्ममा संन्यास.
छे अने आखरे जीवात्माए परमात्मामां अंतर्गत थई जवान
' छे तेथी एवो शुभ प्रसंग व्हेलो आवे अने कर्मनी उपाधिमां पडवु न पडे एटला माटे संसारना भौतिक प्रयासोने असार मानी मोक्ष मेळववाने माटे प्राचीन काळथी ध्यान धरवामां अने तप करवामां जीवन गाळवा संन्यास लेवानी रीत दाखल थएली हती. पहेलां तो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अने शूद्र ए चार मूळ वर्ण पैकी मुख्यत्वे करीने ब्राह्मणज संन्यास लेता अने ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ अने संन्यास एवा जिंदगीना चार आश्रम ठरावेला हता ते पैकी वानप्रस्यामश्र पूरो कर्या पछी संन्यास लेता. पाछळथी गमे ते आश्रममाथी अने गमे ते वर्णना लेकर संन्यास लेवानी प्रथा पडी गई हती.२ १४. क्यारे संन्यास लई शकाय ९ बाबत शास्त्रना ग्रंथोमां मतभेद छे.
... संन्यासोपनिषद्मा कहेलु छे के जेने वितराग संन्यास क्यारे लई शकाय.
__थयो होय तेज संन्यास लई शके. वितराग थया वगरनो संन्यास ले तो नरकमां पडे. संन्यास वानप्रस्थाश्रम पूरी कर्या पछी लेवाय के तेनी पहेलांना गमे ते आश्रममाथी लई शकाय ए विषे शास्त्रना ग्रंयोमा मतभेद छे. केटलाकनो मत एवो छे के वानप्रस्थाश्रम पूरो कर्या वगर संन्यास लई शकाय नहीं. ब्रह्मचर्याश्रम पूरो कर्या पछी गृहस्थाश्रममां दाखल थई ते पूरो कर्या पछी वानप्रस्थाश्रममा दाखल थर्बु जोईए अने ते पछी मरजी होय तो संन्यास लई शकाय. संन्यासोपनिषद्मा कां छे के पहेलां त्रण आश्रम पूरा कर्या पछी संन्यास लेवानी इच्छा राखनारे तेनां माबाप, स्त्री, पुत्र अने बीजां सगां संबंधीनुं अनुभोदन लेवू जोईए अने पोतानी मिलकतनी धर्मादा वगेरेमा व्यवस्था करवी जोईए.५ कौटिल्यना अर्थशास्त्रमा तो एम पण कहेलं छे के बैरी छोकरांना निर्वाह माटे गोठवण कर्या वगर कोई संन्यास ले तो तेनो राजाए २५० पण दंड करवो जोईए. ब्रह्मचर्याश्रम पूरो कर्या पछी परणवानु, पुत्रोत्पत्ति करवानु, अने यज्ञ करवानुं याज्ञवल्क्य स्मृतिमा फरमाव्यु छे. अने विशेषमा कह्यु छे के ए प्रकारचें ऋण ( देवू ) अदा कर्या वगर मोक्षने माटे संन्यास लेवानी
१ सन १९११ नो वडोदग राज्यनो सेन्सस रिपोर्ट, पान १०४. २ (1) वैखानस धर्म प्रश्न १०.
(२.) यति धर्मसंग्रह १५८. ३ संन्यासोपनिषद, पान ६३, ६४. ४ गौतम धर्मसूत्र, पान २१, २२. ५ संन्यासोपनिषद् २३६.
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