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लायक उमरनो थई संसारनो अनुभव ले नहीं त्यां सुधी तेनामां ते आवे नहीं; जेम के मोह विगेरे कर्म क्षय पामेलो होवानो त्रीजो गुण; राग द्वेष विगेरे कमी थई ज्ञान बुद्धि निर्मळ थयेली होवानो चोथो गुण; संसारनी असारता अनुभवेली होवानो पांचमो गुण; वैराग्य उत्पन्न थयेलो होवानो छठो गुण, क्रोध, मान, माया, अने लोभ कमी थयेलो होवानो सातमो गुण; करेलो उपकार नहीं भूलवानो कृतज्ञपणानो नवमो गुण; विनयवंत होवानो दसमो गुण; उत्तम चारित्रवाळो होवानो अगियारमो गुण; कोईनो द्रोह नहीं करवानो बारमो गुण; अने आरंभेलं कार्य गमे तेवां विघ्न आवे तोपण मुकी नहीं देवानो स्थिरतानो पंदरमो गुण; आवा गुण होवानी बधी लायकी तपासीने दीक्षा अपाती होय तो भाग्येज कोई नानी उमरनाने ते प्रसंग आवे. श्री प्रभावक चरित्रमां' वर्णवेला वज्रस्वामी जेवा कोई विरल पुरुषने त्रण वर्ष जेटली बाळ वये दीक्षा लेवानी समज आवी हशे एम घडी भर मानी लईए तोपण एवा विरला हालना वखतमां होवार्नु बनवा जोग लागतुं नथी. बाळ अवस्थामां दीक्षा लेवा जेवो वैराग्य भाग्येज कोईमां आवे. घणीवार एम बने छे के माणसने संसारमां बनता केटलाक संजोगोने लीधे तात्काळिक वैराग्य आवे छे पण ते वैराग्य क्षणिक होय छे अने थोडा वखतमां जे संजोगोमा ते उत्पन्न थयो होय ते संजोगो नाश पामतां ते वैराग्य पण अदृष्य थई जाय छे. मात्र एवी स्थितिमां दीक्षा लीधी होय तो पाछळ पस्तावा जेवू थाय छे. संयम बेडीरूप भासे छे अने ते छोडी घेर पाछा आववा मन थाय तोपण शरम अथवा बीजाओना दबाणने लीधे तेवी दुःखमय स्थितिमा जारी रहेQ पडे छे. एबुं परिणाम नानी उमरना दीक्षा लेवा आवनारना संबंधमां न आवे एटला माटे तेनो वैराग्य क्षणिक छे के स्थिर छे ते बाबतनी दीक्षा आपनारे तपास करवी जोईए. पण हालमां घणे भागे तेमांनु कांई यतुं होय एम लागतुं नथी. जो यतुं होय तो दीक्षा लेवा माटे आवेला पैकी घणाने घेर पाछा मोकल्या होय. पण दीक्षा लेवा आवेलाने कोई साधुए तेम कर्यानुं जाणवामां आव्युं नथी. पण एथी उलट उतावळमां दीक्षा लीधेला पैकी पोतानी मेळे कंटाळीने संसारमा पाछा आवेलाना दाखला तो मळी
आवे छे
४२. चोथो मुद्दो ए जोवानो छे के माबाप विगेरे नजीकना सगां संबंधीनी
समति लीधा वगर सगीरोने छपी रीते दीक्षा आपी सगीरोने छपी रीते दीक्षा पा देवामा आवे छे के केम ! आ मुद्दो पण अमारा आगळ
के कम ? आ मद्दो पण अमा अपाय छे.
पुरवार थयेलो छे. १६ वर्ष उपरनी उमरनाने दीक्षा आपती वखते माबाप विगेरेनी संमति लेवी जोईए के नहीं ए एक तकरारी प्रश्न छे पण १६ वर्षनी अंदरनाने माटे तो समति जोईए ए निर्विवाद छे ( जुओ परिच्छेद २५, ३७.) एम छतां एवी संमति लेवाने स्पष्ट आज्ञानो अनादर करी दीक्षा आपी देवामा आवे छे अने जाण थशे तो माबाप विरोध करी अटकावशे एवी बीकथी ते गुप्त रीते १ पान १५, संवत १९८७ नी आवृत्ति.
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