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वेष बदलवानी साथेन आवी जाय. दीक्षा ए एक भावना छे, दीक्षा ए विवेकपरिपाकनुं परिणाम छे. ए परिपाक थता सुधी दीक्षा उमेदवारे धीरज राखवी जोईए. हरिभद्रसूरिकृत धर्मबिंदुमां कहुं छे तेम “जेम कोई बुद्धिमान पुरुष पगले पगले करी सारी रीते पर्वत उपर चढ। जाय छे तेम वीर पुरुष नियमोए करी चारित्र रूपी पर्वत उपर चढों जाय छे." १ बाळकने केळवणी केवा प्रकारनी आपवी ए तेना माबापनी मरजीनी बात छे. बाळकनुं वळण जोई तेने धर्म संबंधी केळवणी आपवी योग्य जणाय तो ते आपवाने कोइथी हरकत लेवाय नहीं, अने तेथी लायक वये ते दोक्षा लेवा मागतो होय तो तेमां पण योग्य कारण वगर हरकत लेवाय नहीं. पण दीक्षाने माटे तेने लायक करवाने धर्म संबंधी प्राथमिक केळवणी तो आपवी जोईए. जे बाळकना माबाप पोतानो छोकरो के छोकरी साधु जीवन जोवे एम इच्छता होय तेमणे ते छोकरा के छोकरीने १६ वर्षेनी उमर सुधी कोई धर्म संबंधी शिक्षण आपती शाळामां के एवा कोइ आश्रममा दाखल करवो के जेमां साधु जीवनने अनुरूप दररोज दिनचर्या नक्की थई होय अने व्यवहारिक केळवणी साथे संस्कृत, मागधी तेमज जैन साहित्यनुं ज्ञान अपातुं होय तेवी संस्थामा तेमने मोकलवानो जैन समाजे प्रचार करवो जोईए. ६०. दीक्षा ए कई रमवान रमकडु नथी पण घणी तपश्चर्या छे. दीक्षाने मार्गे
... जवानी इच्छावाळा मुसाफरे क्रमे क्रमे पोतानो अभ्यास कमीमां कमी १६ वर्षनी अंद दीक्षा आपवी योग्य नथी.
१५ वधारवो जोईए अने पोतार्नु चारित्र खीलब जोईए.
केवळ दीक्षानो वेष पहेरी लेवाथी अने ओघो पकडी लेवाथी दीक्षा आवी जती नथी, जेने संसारना स्वरूपनु बराबर भान थयु होय, तेम जेने संसार उपरथी वैराग प्रगट थयो होय अने जेनामां मोक्ष दशाने प्राप्त करवानी पोतानी आंतरिक अभिलाषा प्रबळ रीते जागृत थई होय तेज दीक्षा लेवाने याग्य छे. साधुपणानी योग्यता प्राप्त करवाने माटे जैन धर्ममा प्रतिमावहन विधिनी सुंदर योजना करवामां आवी छे. आ प्रतिमावहन विधिना मार्गे क्रमे क्रमे दीक्षानो अभिलाषी साधु जीवननी योग्यता प्राप्त करतो दीक्षित जीवन सन्मुख भावतो जाय छे. आ प्रतिमाओ अगीयार छे अने ते शीखवानो वखत पांच वरस अने छ मासनो कह्यो छे. ए प्रतिमाओमां धर्म अधर्मर्ने ज्ञान, तपश्चर्या, शांतवृत्ति, ब्रह्मचर्य, साधुजीवन, पोताने माटे तैयार करवामां आवेली वस्तुओनो स्याग, विगेरे बाबतोनो अभ्यास आवी जाय छे. पहेली प्रतिमानो अभ्यास एक मास सुधी, बीजीनो बे मास, त्रीजीनो त्रण मास, ए प्रमाणे उत्तरोत्तर प्रतिमाओना अभ्यासमा एकेक मास वधारे लागे छे; कारण के नवीन आदरली प्रतिमाना अभ्यास साथे पाछळनी प्रतिमाओनो अभ्यास चालू राखवानो होय छे. हिंदु धर्मशास्त्र प्रमाणे पण पांचथी आठ वर्ष सुधीमा उपनयन संस्कार थाय छे अने त्यारपछी ब्रह्मचारी तरीके अध्ययन करवान होय छे. हालना वखतमां प्राथमिक निशाळमां दाखल करवानी उमर पण ७ वरसनी ठरली छे.
१ अध्याय श्रीजो सूत्र ८५,
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