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हिन्दु धर्मना अनुयायीओ के जेमनी वस्ती अने साधु वर्गनो समुदाय जैनो करतां घणो मोटो छे तेमना तरफथी कोईपण प्रकारनी सूचना के हकीकत अमारा आगळ आवी नथी. सरकारे जे खरडो प्रसिद्ध कर्यो छे तेमां कई पण फेरफार कर्या वगर तेने कायदानुं रूप आपवामां आवे तो हिन्दु धर्म समाजनो कई बांधो होय एम जणातुं नथी. परंतु तेां कई अजायत्र जेवुं नथी. हिन्दु धर्मना त्यागीओ उपर संसारीओनो कई अंकुश नथी अने एकंदर हिन्दु समाज एवो उदासीन छे के तेमनी त्यागी संस्थामां सुधारो करवानी कई दरकार नथी. पोते थईने कई तजवीज करतो नथी पण जो सरकार कई करे तो तेमां तेने कई बांधो नथी. आधी उलट जनो के जेमना धर्ममां संन्यास दीक्षा खास महत्वनी गणेली छे तेमनमांना केटला एवी दलील रजू करी छे के शास्त्रमां ठरावेला सिद्धांतोनो भंग करी समजण वगरना नानां बाळकोने नसाडी, भगाडी तेमनां मात्राप, वाली विगेरनी संमति वगर केटलाक जैन गुरुओ चेला वधारवाना लोभयी शास्त्र विरुद्ध दीक्षा आपी दे छे, तेने माटे जैन संघ मतभेदने ली कई उपाय योजी शकतो नथी, तेथी सरकारे तेमां दरम्यानगिरी करी कंई बंदोबस्त करवो जोईए. आ विरुद्ध बीजा केटलाक एवी दलील करे छे के आ आरोप खोटो छे. शास्त्र विरुद्ध कई पण बनतुं नथी अने बनतुं होय तोपण ते अटकाववानुं काम जैन संघनुं छे. सरकारे तेमां कोईपण रीते दरम्यानगिरी करवी जोए नहीं, एक तरफथी सुधारको भाषणो, वर्तमानपत्रो, पुस्तको विगेरे द्वारा हकीकत प्रसिद्ध करी जणावे छे के शिष्य वधारवाना मोहथी धर्मनुं फरमान बाजुए मुकीने केटलाक साधुओ सगीर ने (१) फोसलावी ( २ ) नसाडी, भगाडी अने (३) माबाप विगेरेनी संमति लीधा वगर अने (४) संघने जणाव्या वगर छानी रीते दीक्षा आपीदे छे अने (५) कोई इसम लायक उमरनो होय अने परणेलो होय त्यारे तेना माबाप स्त्री विगेरे आप्त वर्गनी संमति मेळववी जोईए ते मळी न होय तोपण दीक्षा आपी दे छे अने तेथी समाजमां क्लेश, कंकास थाय छे अने घणी वखत न्यायाधिशीमां फरियाद थवाना प्रसंगो पण आवे छे. आ विरुद्ध जुना विचारने वळगी रहेनारा अने दीक्षाना चुस्त हिमायतीओनुं कहेवुं एवं छे के आ बधा आक्षेपो खोटा छे अने ते स्वधर्मने खोडवाने अने साधुओ उपर खोटा आरोप मुकी तेमने हलका पाडवाने माटे करेला होय छे, जैन धर्म प्रमाणे आठ वर्षनी उमर पछी दीक्षा लेवानी जेमनी पोतानी इच्छा थई होय - जे दीक्षा आपवाने शास्त्र प्रमाणे लायक होय, अने जो ते सोळ वर्षना अंदरना होय तो तेमणे दीक्षा लेवामां माबाप संमत होय तेमनेज दीक्षा अपाय छे. पण १६ थी वधारे उमरनाने माटे मात्राप स्त्रा विगेरे कोईनी संमतिनी अपेक्षा शास्त्रमां रखाई नथी अने पोताना स्वार्थ तथा मोहनी खातर एव समां वहालां कोई कोई बार दीक्षा लेवा माटे विरुद्धता करे छे तोपण दीक्षा अपाय छे तेथी एव सगां वहालां तथा तेमना संबंधीओ दीक्षा आपनार साधुने वगोवे छे अने कचित प्रसंगे तेमने न्यायाधिशीमां पण घसडी जाय छे; तोपण तेमणे आपेली दीक्षामां कांई
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