Book Title: Sannyas Diksha Pratibandhak Nibandhna Musadda Uper Vichar Karva Nimayeli Samitinu Nivedan
Author(s): Sanyas Diksha Pratibandhak Samiti
Publisher: Sanyas Diksha Pratibandhak Samiti
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३४
जोके आ प्रमाणे आवा मुनि महाराजोए बोध कर्यो छे तोपण बहालां मातापितानी विनंतिनो अस्वीकार करी तेमने रडतां ककळतां मुकीने अगर पोतानी पत्नीने निराधार मुकीने दीक्षा लई लेवी ए भले ओवा मुनि महाराजो पोतानी संख्यामां धारो करवा इष्ट गणता होय पण आध्यात्मिक तेम सांसारिक दृष्टियी तो ते अनिष्ट अने निद्यजगणाय; अने तेथीज श्री महावीर स्वामीए पोताना आचारथी लोकोने दृष्टांत आप्तुं के मातापिता अने स्वजननी अनुमतिथीज दीक्षा लेवी जोईए अने तेज लागतावळगता सर्वना भला अने शांतिने माटे उत्तम मार्ग छे. स्त्री मात्राप विगेरेने रडावी ककळाची दीक्षा लेवा करतां महात्मा गांधीजीए कहुं छे तेम " घरवेठां दीक्षा जेवुं जीवन गाळवामां कांई थोडुं पराक्रम नयी जोईतुं अने खरी कसोटी तो तेमांज थाय छे. संतोषपूर्वक पवित्र रहीने, सत्यने जाळवीने, गरीब घरसंसार चलाववो, परस्त्रीने मावेन समान जाणवी, पोतानी स्त्री साधे पण मर्यादामां रहीने भोगो भोगवचा, शास्त्रार्थनो अभ्यास करवो अने यथाशक्ति देशनी सेवा करवी ए कांई नानीसूनी दीक्षा नथी. दीक्षानो अर्थ आत्मसमर्पण छे. आत्मसमर्पण बाह्याडंबरथी नयी यतुं. ए मानसिक वस्तु छे अने तेने अंगे केटलाक बाह्याचार आवश्यक यई पडे छे. पण ते ज्यारे आंतरशुद्धिं अने आंतर त्यागनुं खरूं चिन्ह होय त्यारेज शोभी शके. ते विना ते केवळ निर्जीव पदार्थ छे, " १
४७. आ एकंदर हकीकत विचारमां लेतां अमने लागे छे के १६ वर्षनी उमरनो इसम पोतानी इच्छाशी दीक्षा लेवा जेवुं धर्म कार्य करे मां बीजा कोईनी समतिनी अपेक्षा कायदा प्रमाणे रहेती नथी. एवा कार्यने माटे ते पोतेज संमति आपवाने कायदा प्रमाणे लायक गणाय छे; तोपण नैतिक दृष्टियी तो माबाप विगेरेनी संमति आवश्यक छे अने तेटलाज माटे ते लेवाने धर्मशास्त्रमां फरमायुं छे. माबाप करतां परणेतर स्त्रीनी स्थिति तो जूदाज प्रकारनी छे. माबापना संबंधमां तो एटलुंज के जेमणे जन्म आपी पाळी पोषी मोटा कर्या तेमनुं मन दुभावीने चाल्या जवं ए व्याजवी नथी. परंतु माबाप करतां परणेतर स्त्री तरफ तो विशेष प्रकारनी फरज छे. तेने पाळवा तो लग्नथी धणी बंधायेलो छे; एटले तेने रझळती मूकीने तेनी परवानगी वगर अने तेनी खोराकी पोषाकीने माटे बंदोबस्त कर्या वगर तेनाथी चाली जवायज नहीं.
१६ वर्षनी उमरना दीक्षा लेनार इसमनी तेनी स। प्रत्येनी फरज.
४८. छेलो प्रश्न संघनी संमति लेवा बदल छे. संघनी समति लेवी ए इष्ट छे परंतु ते लेवीज जोईए अने ते लीधा वगर दीक्षा आपी
संघनी संमति.
शकायज नहीं, एम कांई शास्त्रयी ठरेलं नथी. संघनी संमति लेवानुं केटलाक एवा कारणथी इष्ट गणे छे के तेम करवायी कोई नालायक दीक्षा पाई न जाय अगर सगीरना पोताना धार्मिक हित शिवाय मात्राप के बीजा कोईना स्वार्थना के बीजा कोई अयोग्य कारणथी दीक्षा अपाती नयी ए जोवाय. परिच्छेद २४ मां बतावेली लायकीओ पंकी धार्मिक दृष्टिए जोवानी लायकी दीक्षाना १ नवजीवन, तारीख २८ ऑगस्ट सन १९२७, पान ४२१.
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