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नथी तेथी नीचली न्यायाधिशीनो ठराव रद्द करवामां आव्यो हतो. ए प्रमाणे पोतानुं श्रेय करवा दीक्षा लीवेला कांतीलालनी स्त्री निसामा नांखती अने रझळती रही छे.
४५. दीक्षा आपवानी इंतेजारीमां जैन जेवा जीव दयावाळा धर्मना आचार्यों केवा प्रकारे वचन उच्चारे छे अने दीक्षा लेवानो केवो बोध करे छे तेनो दाखलो हमारा जोवामां आव्यो छे ते अत्रे टांकीए छीए. एक प्रख्यात जैन मुनिने जूदे जूदे प्रसंगे पूछायला वर्तमान वातावरण उपर प्रकाश पाडता प्रश्नोना उत्तरमां तेमणे जे कयुं हतुं ते तारीख १ जुलाई १९३२ ना ' वीर शासन ' पत्रमां प्रसिद्ध थयेलुं छे. तेमां एक सवाल एवो हतो के " परणेतर बाईंनुं भरणपोषण ए दीक्षितनुं वास्तविक देवुं खरूं के नहीं " ? तेना जबाबमां मुनिश्री तरफथी एवं कद्देवामां आभ्युं के " धर्मशास्त्रना फरमान मुजब संसारना माणसो ज्यारे दीक्षित थाय त्यारे व्यवहार दृष्टिए ते माणसो मरण तरीकेनी स्थितिमां मुकायछे अने तेमनां स्नान सुतक सरख पण तेमना सांसारिक कुटुंबीओने लागतु नथी. वळी वेपारमा मनुष्य ज्यारे सर्व गुमात्री दे छे त्यारे स्त्रो पण पतिने पगले चाली पतिना दुःखे दुःखी बनी सुको रोटलो खाई पोतानुं जीवन नभावे छे. देवाळु काढनारनी स्थावर जंगम मिलकतनी कोर्टमां नोंध थाय छे तेमां पण एक बाजु देवानी नोंध अने बीजी बाजु लहेणानी नोंध लेवाय छे, पण आज दिन सुधीमां इन्सॉल्वन्सी नोधावनारा देवाळु काढनारा - पैकी कोईएपग देवानी नोंधनां पोतानी स्त्रीनुं भरणपोषण नधान्युं होय एवं सांभळ्युं नथी. आर्यावर्तनी आर्यपत्नीने धणीना सुखे मुखी अने घणीनां दुःखे दुःखी ए अचळ नियम जाळत्रवानो होय छे. जेथी सारी या नबळी स्थितिने आनंदनाज दिवसो मानी एकांते सुखमांज मग्न रहेनारी आर्याने माटे धणी जे पंथे वळे ते पंथे वळवुं ए स्त्री मात्रनी फरज छे. धणी हृदयपूर्वक जे कांई आपे ते लेवामां बांधो नहीं पण हक्क करीने मागवुं ते अस्थाने छे. वास्तविक रीते लेशभर पण मागी शकेज नहीं. "
भरण पोषण जवाबदारी संबंधी एक जैन मुनिना विचारो
४६. विजयधर्मसूरिकृत " धर्मदेशना " ना ग्रंथमां कहुं छे के दीक्षा लीघेलाने अथवा दीक्षा लेनारने मातापितादिक परिवार वींटीने रूदन करतां कहे छे के " भाई बाल्यावस्थाथी आज सुधी अमोए तारुं पोषण करेलुं छे छतां ज्यारे अत्यारे तुं अमने पोषवा लायक थयो त्यारे घर छोडी चाल्यो जाय छे. हवे अमने कोण पाळशे ? तारा विना कोई पाळनार नथी. हे पुत्र, तारा पितादेव घरडा थया छे; थोडा दिवसना मेमान छे; तारी बेन हजी कुंवारी छे; आ तारा भाईओ सर्वथा पाळवा लायक छे; आ तारी माता विगेरे वर्गनुं पोषण कर, जेथी आ तारों लोक कीर्तिवाळो थाय अने परलोक पण सुधरे. हे पुत्र, तारां बाळको नानां नानां छे; तारी स्त्री नवयौवना छे; कदाच तुं तेनो त्याग करीश अने तेनाथी कुळनी मर्यादा न बनी शकी, तो लोकमां तारी अने अमारी हेलना थशे, अर्थात् लोकापवादरूप दूषण लागशे.”” १ धर्मदेशना, भावनगर आवृत्ति, पान २०.
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मातापिता अने पत्नीने निराधार मुकवां ए योग्य नथी.
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