Book Title: Samkhitta Taramgavai Kaha
Author(s): H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 219
________________ २०४ तरगलोला तो तत्थ विणय पणमिय-मुद्धाणा मत्थए ठविय-हत्था । नेव्वाण-गमण-तुरिया य तीए पाएसु पडिया ॥१६१५ फुड-विसय-मण-ग्गाही तीए अहं सुसमणीए आसिट्ठा । नित्थर दुच्चर चरियं सामण्णमणुत्तरमिणं ति ॥१६१६ धम्मोवदेस-पंथस्स देसणे केवलं तुहं अम्हे ।। जइ काहिसि कल्लाणं पाविहिसी मोक्ख-पहनामण ॥१६१७ तो तं बेमि सुसमणि भीया काहामि तुम्ह वयणं ति। जम्मण-मरण-परंपर-करस्स संसार-वासस्स ॥१६१८ तोतं उत्तम-तव संजड्ढियं जलिय-जलण-सरिसोवम । वंदामि विणय-सुढिया तव-संजम-देसियं साहुं ।।१६१९ तं च गय-काम-राग तत्थ परं चेव सत्थवाह-सुअं। वंदित्तु अइगया हं अज्जाहि समं तं नगरिं ॥१६२० तत्थ बहु-फासुओगास-विहारं महिलिया-सुह-पयारं । कोट्ठागारमनिस्सयमतीमि अज्जाहिं ताहि समं ॥१६२१ तवणिज्ज-चक्कल-निभो पतिसामिय(?) तेय-मंडलो जाओ। ताहे नहयल-तिलओ पच्छिम-संझं गओ सूरो ।।१६२२ तत्थ य गणिणीए समं आलोइय-निदिया पडिक्कंता । धम्माणुराग-रत्ता गयं पि रतिं न-याणामि ॥१६२३ अण्ण दिवसम्मि य तओ सत्थाह सुओ य सो य गणि-वसहो। अणिएय-वास-वसही विहरिसु महियल-तलम्मि ॥१६२४ गणिणोए सगासम्मी गहिया सिक्खा मए वि दुविहा वि । तव चरण-करण-निरया वेरग्ग-गया अहं घरिणि ॥१६२५ एवं विहार विहिणा विहरताओ इहं समायाओ । छहस्स पारणाए अज्जाहं निग्गया भिक्खं ॥१६२६ एवं च पुच्छियाए तुमए सव्वं मए तुहं कहियं । सुह-दुक्ख-परंपरय इह-पर-लोए जमणुभूयं ॥१६२७ एवं पसाहियम्मी तरंगवइयाए तीए समणीए । चिंतेइ तओ घरिणी कह दुक्कर-कारिया एसा ॥१६२८ एवंविह-तारुण्णे एवं विहाए देह-सेवाए । एवंविहे विहवे एवंविह दुक्कर-तवो त्ति ॥१६२९ तो भणइ सेट्ठि-जाया भयवइ इच्छा(?)मणुग्गहमिणं ति । जं कहिय' निय-चरिय खमह य तह किलेसविया ।।१६३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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