Book Title: Samkhitta Taramgavai Kaha
Author(s): H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text
________________
२४४
तरंगलोला
भाणीय सत्थवाहो धणदेवो पउमदेवयस्सम्ह । दिजउ तरंगवइया भणह य जं दिज्जए सुक्क ॥१९७ तो किर दुट्ठो सेट्ठी इमाणि उवयार सुन्न विरसाणि । तस्स पउणाव उत्थण-कराणि वयणाणि भाणीय ॥१९८ कम्म जस्स पवासो तह वासो जस्स निय-गिहे नस्थि । कह तस्स सव्व-देसातिहिस्स धूय नियं दा[148Bहं ।।१९९ तह जो सावय-धम्मे सहायओ होज्ज लद-सम्मत्तो । सावय-कय-कम्मो तस्स दरिहस्स वि हु दाहं ॥२०० सोउं चेमं येडिं बेमि रुयंती अह[ह] कहं होही । कज्जमिण जं मरिही सो विरहे मज्झ तो हं पि ॥२०१ ता सारसिए घेत्तु लेह ममं वच्च तम्नि लिहियं च । सामिय देहाएसं जत्थागंतुं तुह मिलामि ।।२०२
सा वि कय-जहाइट्ठ। सम्मप्पेइ(?) तस्स पडिलेहं । जेणोभय कुल-कुसलं सो च्विय मेलावओ जुत्तो ॥२०३ दटुं चेमं मज्झ क्यणमइमयण-दूमिया गमिउं । कह वि दिवसं पओसे सा रमिउं चेडि मं नेसु ॥२०४ पिययम-पासे भगइ य सा धीरा होसु जेण वयणीय। होही एवं कज्जे कीरंते बेमि तो हं तं ॥२०५ जइ जीवियाए कज्जं सहि मे ता नेसु तत्थ मं तुरिय । एवं निबंधेण य तीए पडिबज्जिउगाहं ॥२०६ मज्जिय कय-सिंगारा भोयण-बक्खित्त-परियणे नीया । पिय वसहिं किच्छेणं जणाउलत्तेग मग्गेणं ।।२०७ तो भवण-पडिदुवारे विचित्त-देस-ट्रियाइ दरिसेइ । दासी मे तं कंतं स-वयंसं सुह-निसण्णं ति ॥२०८ दिट्ठो त्ति फुड-हट्ठा अच्छामो तत्थ एक्क-पासम्मि । मा कोइ पेच्छिहि त्ति य संकाउल-विलिय-चित्ताओ ॥२०९
अम्हं च भागधेज्जेहि तेण विसज्जिया पिय-वयंसा । पेच्छह कोमुइ-चारं तुम्भे हैं पुण सुविस्सं ति ॥२१० तेसु गएसु नियं(?)तो चेडिं भणइ(?) एहि वच्चामो । तं चक्कवाय- पटें दटुं सुसुभेण गिह-नियड २११ तं चाहं निसुणेती पट्ठि-दुवारम्मि जाव चिठ्ठामि । ताव गया सारसिया मम दासी तस्स पासम्मि ॥२१२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/7e17b5479ce6c631ca9128db2e10be85a550fb4fafa8edea522504cb3e12285d.jpg)
Page Navigation
1 ... 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324