Book Title: Samkhitta Taramgavai Kaha
Author(s): H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 264
________________ २४९ तरंगलाला तो भणइ पिओ दिण्णं जीवियमम्हं तए निरासाणं । तो निकारण-वच्छल वीर तुमं सुणसु साहेमि ॥(२७९) वच्छापुरीए पुत्तो है धणदेवस्स सत्थवाहत्स । नामेण पउमेदेधो कहिही लोओ वि तव एय ॥(२८०) ता एज्जसु कइह वि तहि अत्थ दा(हामु)ते सुविपुलं ति । सो भणइ जया एस्सं तत्थ करेज्जह जहा किंचि ॥(२८१) एवं जंपमाणो xxx वञ्चई उत्तर हुत्तो अम्हे वि गया अवर हुत्ता थ (२८२) पत्ता या किलेसेणं साहिय गामम्मि पिययमं बेमि । । कथइ छुहावहारं आहारं इह ग[127A)वेसेह ॥(२८३) तो मं भणइ पिययमो तक्कर परिमुट्ठ-मोल्ल-सव्वस्सा । कहं चंडि परस्स घरं अणज्जमाणा अईहामो ॥(२८४) वसण-परिधाडियस्स [वि] देह त्ति न माणिणो भणियमुचियं । अहवा तुज्झ कए मह नत्थि अकायव्वयं किंचि ॥(२८५) तो वीसमसु मुहुत्तं रच्छमुह-भूसणम्मि एयम्मि । दिस्सावकिलस्संते(?) देवउले तो दो-वि तहिं पविस्सामो ।।(२८६) चिट्ठइ य तस्स मज्झे पडिमा दसरह वत्ताण(? सुण्डाए) सीयाए। तं च नमिउं निसन्ना देउल-पासे विचित्तम्मि ।।(२८७) पेच्छामो य जुवाणं जच्चासेणेतयं तहिं चेव । पुरओ तुरिय-पहाविय-किंकर नियरं सु-नेवत्थं ॥२८८) तो ह नागर-तरुणो कोवि इमा होहिइ त्ति नाउण । लज्जाए परावत्तिय देउलस्स सुसंमुहा जाया ॥२८९) तरुणो वि धम्म-हे पयाहिणं देउले करेमाणो । सो दट्टुं अज्जउत्तं हय-हियओ धाविओ सहसा ॥(२९०) पडिउं च तस्स पाएसु संसुओ भणइ सामि तुह मित्तो । कुम्मासहत्थि-नामा पणासय पुरेचओ अहं ति ॥(२९१) नाउं य अज्ज उत्तेण धणियमालिंगिओ य पुट्ठो य । दोण्हपि कुलाण कुसलं तओ तुमं निग्गओ पवाहं(?)॥(२९२) सो भणइ खेम कुसलं सत्थाह-कुलम्मि तह य सेट्ठि-कुले । जं चागमण-निमित्तं मह तं साइमि सुणसु तुमं ॥ (२९३) सेट्ठि-भवणम्मि कन्ना गय त्ति नाए पहाय-समयम्मि । तो किंकर-दासीए भे कहिओ सव्वा वि वृत्तंतो ॥(२९४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324