Book Title: Samkhitta Taramgavai Kaha
Author(s): H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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२५०
तरंगलेला भणिओ य सत्थवाहो घरमागंतूण सेटिणा एवं ।। वेवाहिय खमसु ममं तंज कडुयाविओ कल्लं ॥(२९५) सिग्घं च समाणिज्जउ जवाइओ जोइऊण मोत्तु भयं । जह होही च सो दुहिओ विदेस वासयर-घरेसु ॥(२९६) तुब्भं च पुव-बुत्तं सव्वं साहइ जहाणुपुचीए । सत्थाहस्स वि सेट्ठी जहा[उ] कहियं स चेडीए ॥(२९७) रोच्छीय तुम्ह विरहे अम्मा बहु-परियणं रुयावंती । जाइ-सरणं च तुम्हें विप्फुरियं दोण्ह पुरीए ॥(२९८) तो सेट्ठि-सत्थवाहेहिं तत्थ देस-नगराकर-सएसु । संपेसिया मणुस्सा समंतओ मग्गिउं तुभे ।।(२९९) अहमवि पणासय-पुरं पट्ट विओ] तुमह णात्तण(जाणण)-निमित्तं । अज्जं च तत्थ पत्तो न य सुद्धी का वि लद्ध त्ति ॥(३००) चिंतेमि खीण-दव्वा धणिय-परद्धा कयावराहा य । पच्चंते सेवंते पुरिसा दुरहीय-बिज्जा य ॥(३०१) उरए परए हिंडिउ च तत्तो इहागओ एण्डिं । देवा य मे पसण्णा जं मे सफलो समो जाओ ।।(३०२) वोत्तुं च तुम्हमेए स-सस्थवाहेण सेट्टिणा लेहा । स-हत्थ-लिहिय त्ति अप्पिया तेण पणएण ॥(३०३) पणएण घेत्तुं पिएणुच्छोडिय ते हियाविया पढमं । तो वाइया स-सई मज्झ सुणावण-कए लेहा ।।(३०४) लिहियं च तत्थ कज्ज तेहिं सयं स-सवहं जहा तुम्हें । इह को वि नावयारी ता इज्जह निब्भया दो वि ॥(३०५) सोउं चेमं सत्था जाया अह पुच्छिओ पिययमो य । कुम्मासहत्थिणा हत्थ-बंधणं दट्ठे किमिमं ति ॥(३०६) कहियं च तस्स बसणं जहाणुभूयं पिएण तो तेण । एगम्मि बंभण-कुले कराविया सुंदर रसोई ॥(३०७) जेमाविया य विहिणा घय-मक्खिय-स[127B]यलपाणि-चलण-वणा । नीमो सं कुलमनिवाइऊण जच्चासमारूढा ॥(३०८) कुम्मासहत्थि भड-चडगरेण परिवारिया पहुत्ता य । गंगा-नई पणासय-पुरस्स पासेसु वहमाणी ॥(३०९) तं चागाह-जलं ति य नावाए उत्तरितु रमणीयं । बलि(?)-पणासय-पुरं ति-भाग-सेसे दिणम्मि गए ॥(३१०)
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