Book Title: Samkhitta Taramgavai Kaha
Author(s): H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 257
________________ २४२ तरंगलोला तुज्झाहि अहं सामिणि कल्लं अवरह-काल-समयग्मि । अप्पाहिया स-सवहं तुह चित्त-वडं गया घेत्तुं ॥१६५ उड्डामि पउम-मंडिय-जच्चुल्लोएण जणिय-सोहाए ।।. तं चिन्त-पट्टयं ते घरसालाए विसालाए ॥१६६ चंदोदए य जाए रमणीए मोत्तमण्ण-चित्तवडे । त चिय जणो पलोयइ सविसेस चोज्जमिइ बेतो ॥१६७ जह जह परिणमइ निसा तह तह निदा-कलंकियच्छीओ। पेच्छय-जणोवसरिओ पविरल-पुरिसो पडो जाओ ।।१६८ तत्थ जण जोयती अहमवि दीव-पडियग्गण मिसेणं । अच्छामि तुज्झ सामिणि आणाए विहिय बहु-माणाए ।।१६९ एत्थंतरग्मि य तहिं निय-किंकर-मित्त-परिगओ एगो। - मणुय-तरुणो सुरूवो आगच्छइ पट्टयं दद्दु ॥१७० सुइरं च पेच्छिऊणं सव्वं वित्तं ति बोतु मोह-गओ। सयराहं धरणियले चित्त-वड-विखित्त परिवारे ॥१७१ नाओ य सो चिराओ समीव-पडिओ वि किंकराईहिं। पड चित्त-कम्म पेच्छण पसंग-वक्खित्त-चित्तेहिं ॥१७२ . तेहि य पण चेट्ठो उक्खित्तो लेप्प-कप्प-जक्खो व्व। .. नेऊण एग-पासे पवाय-देसम्मि निक्खित्तो ॥१७३ दटुं च चित्त पढें इमो हु पडिओ त्ति जाय-आसंका । अहमवि तत्थेव गया चिंतेमि य[148A]होज्ज सो एसो ॥१७४ चक्कवाओ त्ति जाया(?) सो वि समासासिओ वयं सेहिं । बाह-पडिरद्ध-कंठो कलुमिणं भणइ कह कह वि ॥१७५ हा मह पणइणि मयण-सर-दीविए रुइर कुंकुम-सवण्णे । कह वच्चंते वणे तए विहूणो धरीहामि ॥१७६ एवं च विलवमाणो मित्तेहि पुच्छिओ किमेय ति । सो भणइ कहेमि पर कस्स मिमं(?) रहस्सं ति ॥१७७ ज चक्कवाय-सिंगार पगरणं एत्थ पट्टए लिहिय । तं चक्रवाय-जाई-गएण सव्वं मए पत्तं ॥१७८ कहमेय वुत्तं ति पुच्छिओ तेहिं पिय वयं सेहिं । जाईसरो त्ति विहिय-सुहेहिं समुहं निवेठेहिं ॥१७९ जं च तए मे क.हेयां तं चिय सो कहइ तेसिमणुभूयं । नियय सगम्गय गिरा ते चेव गुणा पयासिंतो ॥१८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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