Book Title: Samkhitta Taramgavai Kaha
Author(s): H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 256
________________ तरंगलाला २४१ जोइज्जति य सयरं जणेण तत्तो मए वि पट्टविया । निय-चित्त-पडं घेत्तुं सारसिया साहियमिमं च ॥१४८ जइ होही आयाओ पिओ महं सो इहं पुरवरीए । दळूण] तो पडमिण सरिही पोराणियं जाई ॥१४९ त[१४७ B]ओ मुच्छ गंतुं पुच्छेही सो इमस्स ठिव्यवगा (चितकर) तं च मुणिय पिय मे साहेज्जसु माणुसा (?) ॥१५० एवं च समाइट्ठा सारसिया जाइ तो [अहं सरे । अथमिए पडिकंता विहिणा सुत्ता य धरणीए ।।१५१ रयणी-सेसे अम्मा-पिइं बेमि सुसाहखत्त (?) खेत्त । दिटुं - पहाय-कालम्मि जं म्ए किल हसंतोए ॥१५२ बहु-रयण-धाउ-चित्त दिव्वोसहि-देवरुक्ख-चिंचइयं । तुंग-गिरि चडिया हं तस्स वि सिहरं समारूढा ॥१५३ पडिबुद्धत्ति यदाही कि मे फलमेस सुमिणओ कह[ह] । तो भणइ तत्थ ताओ पुत्ति सुभो ते इमो सुमिणा ।।१५४ उत्तुंग सिहरारुहणे उत्तम-गुण-रूव-संपया-सारो । कण्णाए पइ-लाभो सेसस्स जणस्स धण-लाभो ॥१५५ सत्त-दिणभंतरओ होही ते पुत्ति पहरिसो बिउलो । किंतु स-हासो होस्सइ सोओ चेमं विचितेमि ॥१५६ जइ लहिहमण्ण-पुरिसं ता किं मम जीविएण अहवा हैं । ताव धारेमि पाणे जा सारसिया वि कहइ किं चि ॥१५७ तत्तो हमम्म-तायाभिणंदिया उठ्ठिया स-सयणाओ । सिद्धे नमंसिऊणं करेमि राइय-पडिक्कमण ॥१५८ गुरु-वंदणं च काउं आरूढा सम्म-हम्मिय-तलम्मि । दंतमय-पेढियाए तस्स निसन्ना य जावाहं ॥१५९ ता वाम कण्ण-पिलका जाया भमुह तर च मे फुरियं । तो पुव-सूरि-भणियं पिलकज्झायं(?) विचित्तं ।१६० जह वाम-कण्ण-पिलका पिय-बयण-सुणावया महिलियाए। भमुहंतर-फुरणे पुण इट्ठ-जण-समागमो होइ ॥१६१ एवं च चिंतयंती जा हं चिट्ठामि स हरिसा ताव । उवसरिया सारसिया मज्झ समीवं विसाहेइ ॥१६२ लद्धो सो ते रमणो चिर-नट्ठा आसि नदु(?) बेंतीय । तुट्ठाए समवगूढा सारसिया सा मए गाढं ॥१६३ भणिया य वयंसि कहं मह ता होसी तए कहसु दिट्ठो। सा भणइ सुणसु साहेमि सुयणु जह दंसणं तस्स ॥१६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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