Book Title: Sambodhi 2012 Vol 35
Author(s): J B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 126
________________ 116 सागरमल जैन SAMBODHI किन्तु परवर्तीकाल में इस हीनयान परम्परा में न्याय संबंधी जो ग्रन्थ लिखे गए वे संस्कृत भाषा में रहे। जबकि बौद्ध परम्परा की महायान परम्परा का विपुल साहित्य संस्कृत भाषा में ही निबद्ध है । महायान सम्प्रदाय का बल पालि की अपेक्षा संस्कृत पर ही अधिक रहा है । इसके विपरीत जहाँ जैन परम्परा के मूल आगम प्राकृत भाषा में मिलते हैं वहीं उनकी ८वी शती या उससे परवर्ती टीकाएँ और वृत्तियाँ संस्कृत में है। इसी प्रकार प्राकृत के सभी व्याकरण भी संस्कृत भाषा में लिखे गये हैं और उनका मूल उद्देश्य भी संस्कृत के विद्वानों को प्राकृत भाषा के स्वरूप को समझा कर प्राकृत ग्रन्थों का अर्थ बोध करना ही रहा है। इस सामान्य चर्चा को यहाँ समाप्त करते हुए मैं जैन परम्परा के आचार्यों के द्वारा संस्कृत साहित्य को, जो अवदान दिया गया है, इसकी ही चर्चा करना चाहता हूँ। जहाँ तक जैन परम्परा का प्रश्न है, उसकी श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों शाखाओं में आगम तुल्य ग्रन्थ मूलतः अर्द्धमागधी, महाराष्ट्री एनं शौरसेनी प्राकृत में लिखे गए और उनकी नियुक्ति और उन पर लिखे गए भाष्य भी प्राकृत में ही रहे । किन्तु आगम साहित्य पर जो चूर्णियाँ और चूर्णि-सूत्र लिखे गए वे प्राकृत और संस्कृत की मिश्रित भाषा में ही लिखे गए । चूर्णियों के पश्चात् आगम और आगम तुल्य ग्रन्थों पर जो भी टीकाएँ या वृत्तियाँ लिखी गई अथवा दुर्गम पदों की व्याख्याएँ लिखी गई, वे सभी संस्कृत में ही रही । आगम ग्रन्थों पर संस्कृत में टीकाएँ और वृत्तियाँ लिखने वाले आचार्यों में सर्वप्रथम आचार्य हरिभद्र का क्रम आता है जो ८वीं शताब्दी में हुए । हरिभद्र के पश्चात् शीलांक (१०वीं शताब्दी), अभयदेव (१२वी शताब्दी), मलधारी हेमचन्द्र (१२वीं शताब्दी), मलयगिरि (१३वीं शताब्दी), यशोविजय (१८वी शताब्दी), आदि आचार्यों ने प्रायः संस्कृत भाषा में ही टीकाएँ लिखने का कार्य किया जिसका प्रारम्भ ८वीं शताब्दी से माना जाता है किन्तु जैन आचार्यों ने संस्कृत में ग्रन्थ लिखने का कार्य उससे ५०० वर्ष पूर्व ही प्रारम्भ कर दिया था। जैन परम्परा में लगभग ईसा की ३री शताब्दी में आचार्य उमास्वाति ने सर्वप्रथम संस्कृत भाषा में तत्त्वार्थसूत्र और उसके स्वोपज्ञभाष्य की रचना की थी। इसके अतिरिक्त उमास्वाति की प्रशमरति आदि कुछ अन्य कृतियाँ भी संस्कृत भाषा में लिखी गई । इसमें प्रशमरति-प्रकरण और पूजाप्रकरण प्रमुख है । यद्यपि पूजा-प्रकरण का लेखन उमास्वाति ने ही किया था या किसी अन्य ने, इस संबंध में विद्वानों में मतभेद है। जैन आचार्यों द्वारा संस्कृत भाषा में निबद्ध ग्रन्थों में मतभेद है। जैन आचार्यों द्वारा संस्कृत भाषा में निबद्ध ग्रन्थों में तत्त्वार्थसूत्र और उसकी टीकाएँ प्रमुख मानी जा सकती हैं । तत्त्वार्थसूत्र पर दिगम्बर परम्परा में पूज्यपाद देवनन्दि (लगभग ६ठी शताब्दी) ने सर्वार्थसिद्धि नामक टीका की रचना की । इनकी अन्य कृतियों में इष्टोपदेश, समाधितन्त्र आदि भी है, जो संस्कृत भाषा में लिखी गई है। श्वेताम्बर धारा में जैन न्याय और अनेकांतवाद पर आधारित सर्वप्रथम संस्कृत कृति मल्लवादी क्षमाश्रमण का द्वादशारनयचक्र है । उस पर सिद्धसेन की जो टीका है वह भी संस्कृत में है, किन्तु सिद्धसेन की मुख्य. कृति सन्मतितर्क मिलती है, जो संस्कृत भाषा में निबद्ध है । तत्त्वार्थसूत्र पर श्वेताम्बर परम्परा में संस्कृत भाषा में टीका लिखने वाले सिद्धसेन गणि (७वीं शती) है जो सन्मतितर्क के कर्ता सिद्धसेन दिवाकर से भिन्न है, और ७वीं शती के है । जैन न्याय पर सर्वप्रथम संस्कृत भाषा में ग्रन्थ लिखने वाले सिद्धसेन दिवाकर है जिन्होंने न्यायवतार नामक एक द्वात्रिंशिका संस्कृत भाषा में लिखी है। दिगम्बर परम्परा में पूज्यवाद के पश्चात् अकंलक ने तत्त्वार्थसूत्र पर संस्कृत में राजवार्तिक नामक टीका लिखी साथ ही जैनन्याय

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