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सागरमल जैन
SAMBODHI
के आठ लाख अर्थ करते हुए अष्टलक्षी नामक ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखा था । संस्कृत की गद्यकाव्य शैली एवं चम्पूकाव्य शैली में जैनाचार्यों के निम्न ग्रन्थ मिलते है - तिलकमंजरी, तिलकमंजरीकथासार, गद्यचिन्तामणि आदि । चम्पूकाव्यों में कुवलयमाला, यशस्तिलकचम्पू, जीवनधरचम्पू, चम्पूमण्डन आदि ग्रन्थ जैनाचार्यों द्वारा रचित है, गीतिकाव्य, रसमुक्तक गीतिकाव्य दूतकाव्य या सन्देशकाव्य (खण्डकाव्य) जैनाचार्यों ने लिखे है, यथा पार्वाभ्युदय नेमिदूत, जैनमेघदूत, शीलदूत, पनवदूत आदि अनेक दूतकाव्य । इसके अतिरिक्त जैनाचार्यों ने संस्कृत में पादपूर्ति साहित्य भी लिखा है। इसमें अनेक ग्रन्थ मेघदूत की पादपूर्ति के रूप में लिखे गये । साथ ही जैनाचार्यों ने कुछ सुभाषितों और अनेक स्तोत्र भी संस्कृत भाषा में लिखे है। उनके स्तोत्र साहित्य को अनेक संग्रह ग्रन्थों में समाहित किया गया है। ये स्तुति-स्तोत्र सहस्त्रों की संख्या में है।
साथ ही दृश्यकाव्य के रूप में अनेक नाटकों की रचना भी रामचन्द्र आदि जैनाचार्यों ने की है जैसे - सत्यहरिश्चन्द्र, नलविलास, मल्लिकामकरन्द, कौमुदीमित्राणन्द, रघुविलास, निर्भयभीमव्यायोग, रोहिणीमृगांक, राघवाभ्युदय, यादवाभ्यदय, वनमाला, चन्द्रलेखाविजयप्रकरण, प्रबद्धरौहिणेय, द्रौपदीस्वयंवर, मोहराजपराजय, मुद्रितकुमुदचन्द्र, धर्माभ्युदय, श्यामृत, हम्मीरमदमर्दन, करूणावज्रायुध, अंजनापवनंजय, सुभद्रानाटिका, विक्रान्तकौरव, मैथिलीकल्याण, ज्योतिष्प्रभानाटक, रम्भामंजरी, ज्ञानचन्द्रोदय, ज्ञानसूर्योदय आदि । आगमिक व्याख्याओं दर्शन, काव्य, नाटक, दूतकाव्य एवं कथा साहित्य के अतिरिक्त भी विविध विषयों पर भी जैनाचार्यों एवं जैन लेखकों ने संस्कृत में ग्रन्थ लिखे है। जैन साहित्य पर हम यहाँ मात्र उनका नाम निर्देश कर रहे है। संस्कृत एवं प्राकृत के व्याकरण सम्बन्धी जैनाचार्यों के संस्कृत ग्रन्थ
__भाषा का प्राण व्याकरण है अत: जैन आचार्यों ने प्राकृत एवं संस्कृत भाषा के व्याकरण सम्बन्धी ग्रन्थों की रचना की। उनके इन व्याकरण सम्बन्धी ग्रन्थों का माध्यम संस्कृत भाषा रही। उनके व्याकरण सम्बन्धी ग्रन्थों की सूची अति विस्तृत है, जो निम्नानुसार है - ऐन्द्रव्याकरण शब्दप्राभृत, क्षपणक-व्याकरण, जैनेन्द्र-व्याकरण, जैनेन्द्रन्यास, जैनेंद्रभाष्य और शब्दावतारन्यास, महावृत्ति, शब्दांभोजभास्करन्यास, पंचवस्तु, लघुजैनेंद्र, शब्दावर्ण, शब्दार्णवचंद्रिका, शब्दार्णवप्रक्रिया, भगवद्वाग्वादिनी, जैनेंद्रव्याकरण वृत्ति, अनिट्कारिकावचूरि, शाकटायन-व्याकरण, पाल्यकीर्ति शाकटायन के व्याकरण सम्बन्धी अन्य ग्रन्थ अमोघवृत्ति आदि चिंतामणिशाकटायनव्याकरणवृत्ति, मणिप्रकाशिका, प्रक्रियासंग्रह, शाकटायनटीका, रूपसिद्धि, गणरत्नमहोदधि, लिंगानुशासन, धातुपाठ, पंचग्रंथी या बुद्धिसागर व्याकरण, दीपव्याकरण, शब्दानुशासन, शब्दार्णवव्याकरण, शब्दार्णव वृत्ति, विद्यानंदव्याकरण, नूतनव्याकरण, प्रेमलाभव्याकरण, शब्दभूषणव्याकरण, प्रयोगमुख्यव्याकरण, सिद्धहेमचंद्रशब्दानुशासन, उसकी स्वोपज्ञलघुवृत्ति, हैमलघुवृत्तिअवचूरि, चतुष्कवृत्ति-अवचूरि, लघुवृत्ति अवचूरि, हैमलघुवृत्तिढुंढिका, लघुव्याख्यानढुंढिका, ढुंढिका दीपिका, बृहद्वृत्ति सारोद्वार, बृहदवृत्ति अवचूणिका, बृहदवृत्तिढुंढिका, बृहदवृत्तिदीपिका, कक्षापटवृत्ति, बृहवृत्तिटिप्पण, हैमोदाहरणवृत्ति, हैमदशपादविशेष और हैमदशपादविशेषार्थ, बलाबलसूत्रवृत्ति, क्रियारत्नसमुच्चय, न्यायसंग्रह, स्यादिशब्दसमुच्चय, स्यादिव्याकरण, स्यादिशब्ददीपिका, हेमविभ्रमटीका, कविकल्पद्रुमटीका, तिडन्वयोंक्ति, हैमधातुपारायण, हैमधातुपारायणवृत्ति, हेमलिंगानुशासनवृत्ति,