Book Title: Sambodhi 2012 Vol 35
Author(s): J B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 193
________________ परमसुख की साधनाः विपश्यना : कन्हैयालालजी लोढ़ा ग्रंथ समीक्षा : सागरमल जैन समग्र भारतीय साधनाओं का मुख्य लक्ष्य चेतना की निर्विकल्प अवस्था को प्राप्त करना है। योगसूत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया हैं कि योग साधना का लक्ष्य चित्तवृत्तिका निरोध है । श्रमण परम्परा की साधना में चित्त की निर्विकल्प दशा को ही निर्वाण के रूप में परिभाषित किया गया है। उसमें माना गया है कि तृष्णा विकल्प जन्य है। विकल्पों के निरोध के बिना तृष्णा का उच्छेद सम्भव नहीं हैं । उसी प्रकार जैन परम्परा में भी यह कहा गया है कि मन, वचन और काया की प्रवृत्ति का उच्छेद ही साधना का लक्ष्य है । जिसे उसकी पारम्परिक भाषा में 'योग-निरोध' कहा गया हैं, यह रोग निरोध भी चित्तवृत्ति की निर्विकल्पता ही है । इसे समता या वीतराग्ता के रूप में भी माना गया है। फिर भी यह विचारणीय प्रश्न हैं कि निर्विकल्पता से हमारा क्या तात्पर्य है ? परमसुख विपश्यना नामक प्रस्तुत पुस्तक में कन्हैयालालजी लोढ़ा ने निर्विकल्पता को दो प्रकार की बताया है - (१) निर्विकल्प-स्थिति और (२) निर्विकल्प-बोध । निर्विकल्प स्थिति भी दो प्रकार की हैएक तो जड़ता रूप निर्विकल्प स्थिति जैसे प्रगाढ़-निद्रा, मूर्छा, बेहोशी आदि, इसका साधना में कोई स्थान नहीं है। यह एक अचेतन दशा है, जैन दर्शन के अनुसार यह निर्विकल्प-स्थिति सभी असंज्ञी (विवेक-क्षमता से रहित), अविकसित, पृथ्वी, अप, वायु, अग्नि और वनस्पतिकायिक जीवों में भी पाई जाती है। गहननिद्रा में भी जीव निर्विकल्पस्थिति वाला होता है । आधुनिक मनोविज्ञान में यह अचेतन मन (unconcious mind) की दशा है । दूसरी चिन्मयतारूप निर्विकल्प स्थिति है, किसी अभ्यास से आई निर्विकल्प (समाधिस्थ) होने से साधक को "मैं आनन्दित हूँ" यह अनुभव होता है तथा इसमें अहंभाव बना रहता है। इसे पातंजलयोग में सम्प्रज्ञात समाधि कहा है । अन्य दृष्टि में यह उपशम की स्थिति है । इसमें वासना (विकार) के संस्कारों का उदय नहीं होता किन्तु सुप्त (सत्ता) अवस्था में अवचेतन मन (अंतःकरण) में रहते हैं। जो कुछ काल के पश्चात् विकल्प रूप में उदय हो जाते हैं । जब यह समाधिस्थ निर्विकल्प स्थिति सहज एवं स्वाभाविक हो जाती है, उसके लिए किसी अभ्यास एवं प्रयत्न नहीं करना होता तथा चित्त अहं शून्य हो जाता हैं, जिसे बौद्ध दर्शन

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