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Vol. XX 1996
की भाषा में कर्म है 190
जैसा कर्म वैसा व्यक्ति
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जगत् की विचित्रता...
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एक बार गणधर गौतम ने भगवान् महावीर से पूछा- 'भंते
है किसी में ज्ञान कम है, किसी में अधिक इसका क्या कारण है२४ ?
विश्व में सर्वत्र तरतमता दिखाई देती
भगवान् बोले- 'गौतम ! इस तरतमता का कारण है 'कर्म'.
यदि आजके जीव-विज्ञानी से पूछा जाए कि विश्व की विषमता या तरतमता का कारण क्या है तो वह कहेगा कि सारी विषमता- तरतमता का एक मात्र कारण है 'जीन' ।
जैसा जीन, वैसा आदमी
जैसा 'जीन' होता है, गुणसूत्र होता है, आदमी वैसा ही बन जाता है, उसका स्वभाव और व्यवहार वैसा ही हो जाता है यह जीन ही सभी संस्कार-सूत्रों तथा सारे भेदों-विभेदों का मूल कारण है। जीन-कर्म पर लिखे आदेश
जीन - विज्ञान की भाषा में कहा जाता है कि एक-एक जीन पर साठ-साठ हजार आदेश लिखे हुए होते हैं।
कर्म-स्कन्ध
कर्म - शास्त्र की भाषा में कहा जा सकता हैं कि एक-एक कर्म-स्कन्ध में अनन्त आदेश लिखे हुए होते हैं।
जीन स्थूल शरीर, कर्म सूक्ष्म शरीर
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अभी तक विज्ञान केवल 'जीन' है, किन्तु कर्म सूक्ष्म शरीर का घटक है वह सूक्ष्म है। इससे सूक्ष्म है, कर्म शरीर लिपियाँ लिखी हुई है । हमारे पुरुषार्थ का, सारा लेखा-जोखा और सारी प्रतिक्रियाएँ कर्म वैसा ही व्यवहार करने लग जाता है ।
तक ही पहुंच पाया है। जीन इस स्थूल शरीर का ही घटक इस स्थूल शरीर के भीतर तैजस शरीर है, विद्युत् शरीर है, यह सूक्ष्मतम है। इसके एक-एक स्कन्ध पर अनन्त अनन्त अच्छाइयों और बुराइयों का न्यूनताओं और विशेषताओं का शरीर में अंकित हैं। वहाँ से जैसे स्पन्दन आते हैं, आदमी
कर्म सिद्धान्त और मनोविज्ञान का सिद्धान्त
कर्म का सिद्धान्त अति सूक्ष्म है। स्थूल बुद्धि से परे का सिद्धान्त है। आज के वंशपरंपरा के सिद्धान्त ने कर्मसिद्धान्त को समझने में सुविधा प्रदान की है ।
जीन- आनुवंशिक गुणों के संवाहक
जीन व्यक्ति के आनुवंशिक गुणों के संवाहक हैं । व्यक्ति-व्यक्ति में जो भेद दिखाई देता है, वह जीन के द्वारा किया हुआ भेद है।
प्रत्येक विशिष्ट गुण के लिए विशिष्ट प्रकार का जीन होता है । ये आनुवंशिकता के निमय कर्मवाद के संवादी नियम है।