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लेखक का संक्षिप्त परिचय ।
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वाचकवृन्द ! ...., प्रातःस्मरणीय पूज्यपाद इतिहासवेत्ता मुनि श्री. ज्ञानसुन्दरजी महाराज का जन्म उपकेश वंश के श्रेष्ठि गोत्रीय वैद्य मुहत्ता घराने में मारवाड़ प्रान्तागेत वीसलपुर ग्राम में श्री नवलमलजी की भार्या की कूख से वि. सं. १९३० के आश्विन शुक्ला १० ( विजयादशमी) को हुआ। श्राप का नाम 'गयवरचन्द्र' रखा गया था। बाल्यकाल में समुचित शिक्षा प्राप्तकर आपने व्यापारिक क्षेत्र में प्रवेश किया । सं० १९५४ में आपका विवाह हुआ था। देशाटन में आपने अनेक अनुभव प्राप्तकर साधुसंगत से भर जवानी में सांसारिक मोह को त्याग सं० १९६३ में स्थानकवासी सम्प्रदाय में दीक्षा ली।
__ साधु होकर आप ज्ञान, ध्यान और तपस्या में लीन हुए। आपने जिज्ञासुवृत्ति से सूत्रों का अध्ययन किया जिसके फलस्वरूप आपने निस्पृह योगीराज रत्नविजयजी के पास श्रोसियां तीपर सं० १९७२ की मौन एकादशी को संवेगी आम्नाय में दीक्षा ली । आप का व्याख्यान बहुत प्रभा. वोत्पादक होता है अतः थोड़े ही समय में आप लोकप्रिय हो गये । मुनिश्री परम पुरुषार्थी हैं, आप का प्रेम ज्ञान के प्रति अत्यधिक है। कठिन परिश्रम से आपने सैकड़ों पुस्तकें लिखी हैं जिनमें शीघ्रबोध के २५ भाग और · जैन जाति महोदय ' नामक विशाल ग्रंथ विशेष उल्लेखनीय हैं ।
आप के चतुर्मास प्रायः बड़े बड़े नगरों में हुआ करते हैं । समाज सुधारको भी श्राप श्रावश्यक और धार्मिक प्रवृति के लिये अनिवार्य समझते हैं । आपके सदोपदेश से कई संस्थाएं स्थापित हुई हैं जिनसे जैन साहित्य की और मारवाड़ के युवकों की विशेष जागृति हुई है । पाली, लुणावा, सादड़ी, बीलाड़ा, पीपाड़, फलोधी, नागौर, लोहावट, झगडिया, सूरत, जोधपुर,