Book Title: Saddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust
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सद्धर्मसंरक्षक प्रवर्तक आपश्री के परम आराध्यदेव श्रीतीर्थंकर प्रभु की प्रतिमा को विराजमान कराया तथा उनकी नित्य-प्रति पूजा-सेवा करने का आदेश ग्रामवासियों को दिया।
यहाँ से विहार कर वि० सं० १९१९ (ई० स० १८६२) में आप गुजरांवाला में पधारे । यहाँ पर आकर आपने चतुर्विंशति तीर्थंकरों का एक स्तवन बनाया। आपश्री के प्रतिबोध देने से पंजाब में जिन-जिन नगरों के श्रावकों ने शुद्ध सनातन जैनधर्म को स्वीकार किया था उन-उन नगरों में श्रीजिनमंदिरों का निर्माण चाल हो चुका हुआ था । वि० सं० १९१८ (ई० स० १८६१) के दिल्ली के चतुर्मास में आपने रामनगर के मंदिर के लिए दिल्ली से श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथजी की प्रतिमा भिजवाई थी, जो बाद में वहाँ के मन्दिर में मूलनायक के रूप में स्थापित की गई थी। वि० सं० १९१९ (ई० स० १८६२)का चौमासा आपने गुजरांवाला में किया । चौमासे उठे आप के शिष्य भावविजय और रतनविजय भी गुजरांवाला में पहुँच गये । यहाँ आपने वि० सं० १९२० बैसाख वदि १३ (ई० स० १८६३) के दिन नवनिर्मित जैनमन्दिर की प्रतिष्ठा करवाकर श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथ को मूलनायक के रूप में विराजमान किया तथा जो प्रतिमाएं यहा यति बसंतारिखजी के चौबारे में थी, उनको भी इसी मन्दिरजी में विराजमान कर दिया।
गुजरांवाला में मन्दिर की प्रतिष्ठा कराकर आप पिंडदादनखा पधारे । वहां कुछ दिन स्थिरता करके रामनगर की तरफ विहार किया। रास्ते में चन्द्रभागा (चनाब) नदी पर पहुँचे । नदी को पार करने के लिए गुरुजी अपने शिष्यों के साथ नाव में बैठे । साथ में तपस्वी मोहनलालजी, गुजरांवाला मन्दिर का पुजारी बेलीराम, दिल्ली का
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) 1(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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