Book Title: Saddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust

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Page 187
________________ कुछ प्रश्नोत्त १७९ चारित्राचार तपाचार और वीर्याचार मुनि के इन पाँच आचारों से युक्त हो वह गच्छ कहलाता है। इनसे रहित गच्छ और सामाचारी कैसे संभव हो सकते हैं? यह बात आत्मार्थी, सरल स्वभावी, मुमुक्षु ज्ञानी भव्यात्मा के बिना समझ में नहीं आ सकती। इस प्रकार समय-समय पर अनेक प्रकार की शंका-समाधान करने के लिये और वस्तुस्थिति को समझने के लिये तथा ज्ञान की वृद्धि के लिये अनेक प्रकार की चर्चाएं गुरु और शिष्यों में होती रहती थीं । क्योंकि गणिश्री मूलचन्दजी अधिकतर गुरुजी की निश्रा में ही रहे हैं । गुरुराज बूटेरायजी महाराज वि० सं० १९३१ (ई० स० १८७४) का चौमासा भावनगर में करके अहमदाबाद पधारे। गणि मूलचन्दजी महाराज भी चौमासे उठे अहमदाबाद पधार चुके थे । हम पहले लिख चुके हैं कि पंजाब में लुंकामतीस्थानकमार्गियों का बहुत जोर था । सत्यवीर मुनिश्री बूटेरायजी ने इस मत का त्याग कर पंजाब में ही श्रीवीरप्रभु के सत्यधर्म को स्वीकार किया । यहाँ पर आपने अकेले ही किस प्रकार वीरता, निडरता और धीरता के साथ सत्यधर्म का पुनरुद्धार किया, अब आपसे यह छिपा नहीं रहा । आप पंजाब में वि० सं० १९०१ से १९०८ तक तथा वि० सं० १९९९ से १९२९ तक सत्यधर्म का पुनरुद्धार कर वापिस गुजरात पधार गये । मुनिश्री मूलचन्दजी ने वि० सं० १९०२ में गुजरांवाला में दीक्षा ली और वि० सं० १९०७ तक वहाँ ही रहे। तथा वहाँ पर सुश्राव शास्त्री लाला कर्मचन्दजी दूगड से जो जैनागमों तथा जैनदर्शन के मार्मिक विद्वान थे, शास्त्राभ्यास करते रहे। इसलिये उनका पंजाब Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) / (1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [179]

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