Book Title: Saddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust
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श्रीसिद्धाचलजी की यात्रा
१८७ इस शास्त्रार्थ का अहमदाबाद की जैन जनता पर बड़ा भारी प्रभाव पडा। अभी तक जो लोग शांतिसागर का कुछ पक्ष लिये बैठे थे, उन्होंने भी पल्ला झाड दिया और उसका साथ छोड दिया ।
महाराजश्री आत्मारामजी की अपूर्व विद्वत्ता, प्रतिभा और समयज्ञता की जनता द्वारा भूरि-भूरि प्रशंसा होने लगी । आपके तेजस्वी प्रभाव के आगे शांतिसागर का व्यक्तित्व अमावस के चन्द्रमा की भांति निस्तेज होकर रह गया । सभा विसर्जित होने के बाद नगरसेठ प्रेमाभाई तथा दलपतभाई ने हाथ जोड कर कहा - "कृपानाथ ! निदाघजन्य महाताप से संतप्त मानवमेदनी को शांति पहुंचानेवाले वर्षाकालीन मेघ की भांति आपश्रीने सचोट युक्तियों द्वारा शास्त्रार्थ करके यहां की संतप्त जनता के शांतरस संचार किया है। हम आपकी इस कृपा के लिए चिरंऋणी रहेंगे । यहाँ का संघ आपका ज्ञान और वाद-विवाद की कुशलता देखकर बहुत खुश हुआ है। आपश्री सिद्धाचलजी की यात्रा करके शीघ्र यहाँ पधारने की कृपा करियेगा।" श्रीसिद्धाचलजी की यात्रा
पूज्य आत्मारामजी ने अपने १५ साथी मुनियों के साथ अहमदाबाद से श्रीसिद्धाचलजी की यात्रा के लिये विहार किया और ग्रामानुग्राम विहार करते हुए पालीताना पधार गये । श्रीसिद्धगिरि के भव्य जिन-प्रासादों में विराजमान श्रीऋषभदेव आदि तीर्थंकर देवों के पुण्य दर्शन की चिरंतन अभिलाषा की पूर्ति का पुण्य अवसर आया और सिद्धगिरि पर चढते हुए सब साधुओं के साथ आदीश्वर भगवान के विशाल मंदिर में पहुँचे । जहाँ प्रभु शांतमुद्रा में विराजमान थे।
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI/ Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013)p6.5
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