Book Title: Saddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust

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Page 214
________________ २०६ सद्धर्मसंरक्षक विजयजी, (५) मुनिश्री सोमविजयजी, (६) मुनिश्री सिद्ध(सिद्धि)विजयजी, (७) मुनिश्री हीरविजयजी। मुनिश्री बुद्धिविजयजी के नाम (१) जन्मनाम - टलसिंह (२) प्रसिद्धनाम - दलसिंह (३) बूटासिंह (४) लुंकागच्छीय स्थानकवासी दीक्षानाम - ऋषि बूटेरायजी (५) संवेगी दीक्षानाम - मुनिश्री बुद्धिविजयजी। गुरुदेव बुद्धिविजयजी के मुख्य सात शिष्यों के नाम (१) गणिश्री मुक्तिविजयजी (मूलचन्दजी), (२) मुनिश्री वृद्धिविजयजी (वृद्धिचन्दजी), (३) मुनिश्री नित्य(नीति)विजयजी, (४) मुनिश्री आनन्दविजयजी, (५) मुनिश्री मोतीविजयजी, (६) मुनिश्री तपस्वी खांतिविजयजी, (७) श्रीविजयानन्दसूरीश्वर (आत्मारामजी) महाराज । आप लोग सप्तर्षि के नाम से प्रसिद्ध थे। मुनिश्री बुद्धिविजयजी का संक्षिप्त परिचय वि० सं० १८६३ में दुलूआ गांव में जन्म । आठ वर्ष की आयु में पिता का स्वर्गवास, पश्चात् अपनी माताजी के साथ बडाकोट साबरवान में निवास । १६ वर्ष की आयु में वैराग्य । २५ वर्ष की आयु में दिल्ली में वि० सं० १८८८ में नागरमल्लजी से लुंकामतस्थानकवासी पंथ की दीक्षा । वि० सं० १८६५ में इस मत की असारता का बोध । वि० सं० १८६७ में श्रीमहावीर प्रभु के शुद्ध सत्यधर्म का प्रचार प्रारंभ । वि० सं० १९०३ में मुहपत्ती का डोरा तोडा । वि० सं० १९१२ में अहमदाबाद में संवेगी दीक्षा । वि० सं० १९३८ में अहमदाबाद में स्वर्गवास । Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [206]

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