Book Title: Saddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust
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सद्धर्मसंरक्षक
श्रीबुद्धिविजयजी महाराज के शिष्य
गणिश्री मूलचन्दजी की परम्परा में मुनि दर्शनविजय ( त्रिपुटी ) ने (१) 'तपागच्छ श्रमण वंशवृक्ष' नामक पुस्तक के चरित्र विभाग में पृष्ठ १९ में लिखा है कि पूज्य बुद्धिविजयजी महाराज के पैंतीस शिष्य थे । परन्तु इसी पुस्तक के वंशवृक्ष विभाग के पृष्ठ १० में जहाँ बुद्धिविजयजी महाराज का वंशवृक्ष चार्ट दिया है वहाँ मात्र सात नामों का ही उल्लेख किया है तथा (२) इन्हीं दर्शनविजयजी ने श्री मूलचन्दजी (गणि मुक्तिविजय) का जीवनचरित्र 'आदर्श गच्छाधिराज' के नाम से लिखा है उसके पृष्ठ ७२ पर 'सप्तर्षि' शीर्षक में भी लिखा है कि श्रीबुद्धिविजयजी के सात शिष्य थे और इन्हीं सातों का ही अत्यन्त संक्षिप्त परिचय दिया है । (३) पूज्य आत्मारामजी (विजयानन्दसूरि) के पट्टधर आचार्य विजयवल्लभसूरिजी के शिष्य मुनि शिवविजयजी ने श्रीतपगच्छ-पट्टावली में बारह शिष्यों के नाम लिखे हैं।
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(४) पूज्य बूटेरायजी महाराज ने अपनी आत्मकथा ( मुखपत्तीचर्चा नामक पुस्तक) में अपना अत्यन्त संक्षिप्त और अपूर्ण परिचय दिया है। आप प्राय: कहा करते थे कि 'बूटा अपने विषय में क्या कहे, अपने लिये कुछ कहना अपने मुँह मियां-मिट्ट बनना उचित नहीं है ।' फिर भी उस समय की समकालीन सामग्री से जो कुछ मालूम हो सका है, उसी के आधार पर जितने शिष्यों का पता लग पाया है उनका विवरण इस प्रकार है
x १. एक जाट ने दीक्षा ली, थोडे वर्षों बाद मर गया । (श्रीबूटेरायजी ने इसका नाम नहीं लिखा)
x २. एक बनिये ने दीक्षा ली। बाद में वह दीक्षा छोड़ गया ।
Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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