Book Title: Saddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust

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Page 227
________________ पूज्य बुद्धिविजयजी के जीवन की मुख्य घटनाएं २१९ १३- वि० सं० १९०८ (ई० स० १८५१) को पंजाब से गुजरात जाने के लिये विहार किया । जैन-तीर्थों की यात्रा, शुद्ध धर्मानुयायी सद्गुरु की खोज, श्रीवीतराग केवली भगवन्तों द्वारा प्ररूपित आगमों में प्रतिपादित स्वलिंग मुनि के वेष को धारण करके मोक्ष मार्ग की आराधना और प्रभु महावीर द्वारा प्रतिपादन जैन-मुनि के चारित्र को धारण करने के लिये प्रस्थान किया। १४- वि० सं० १९१२ (ई० स० १८५५) में आपने अहमदाबाद में तपागच्छीय गणि श्रीमणिविजयजी से अपने दो शिष्यों मुनिश्री मूलचन्दजी तथा मुनिश्री वृद्धिचन्दजी के साथ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैनधर्म की संवेगी दीक्षा ग्रहण की। आपश्री मणिविजयजी के शिष्य हुए, नाम बुद्धिविजयजी रखा गया तथा अन्य दोनों साधु आपके शिष्य हुए । नाम क्रमशः मुनि मुक्तिविजयजी तथा मुनि वृद्धिविजयजी रखा गया । १५- वि० सं० १९१९ (ई० स० १८६२) में पुन: पंजाब में आपका प्रवेश । इस समय आपके साथ आपके दो अन्य शिष्य भी थे। १६- वि० सं० १९२० से १९२६ (ई० स० १८६३ से १८६९) तक आपने उपदेश द्वारा निर्माण कराये हुए आठ जिनमंदिरों की पंजाब में प्रतिष्ठा की, रावलपिंडी, जम्मू से लेकर दिल्ली तक शुद्ध जैनधर्म का प्रचार और लुकामती ऋषि अमरसिंह से शास्त्रार्थ । १७- वि० सं० १९२८ (ई० स० १८७१) को पुनः गुजरात में पधारे । वि० सं० १९२९ (ई० स० १८७२) में अहमदाबाद में मुखपत्ती विषयक चर्चा | संवेगी साधुओं, श्रीपूज्यों, यतियों (गोरजी) के शिथिलाचार के विरुद्ध जोरदार आन्दोलन की शुरूआत । Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [219]

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