Book Title: Saddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust
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श्रीबुद्धिविजयजी महाराज द्वारा प्रतिबोधित मुख्य श्रावक २१५ चतुर्विध संघ का प्रत्येक व्यक्ति इसकी ओर लक्ष्य दे और आगमादि का अभ्यास करे।
१-गुजरांवाला - लाला धर्मयशजी के सुपुत्र सुश्रावक लाला कर्मचन्दजी दूगड शास्त्री तथा लाला निहालचन्दजी के सुपुत्र लाला गुलाबरायजी बरड । ये दोनों आगम-सूत्रों के जानकार थे। बूटेरायजी महाराज ने लाला कर्मचन्दजी से चर्चा करके इनको सर्व प्रथम पंजाब में प्रतिबोधित किया । जिसके परिणामस्वरूप यहा के चार-पाच परिवारों को छोडकर सब ओसवाल भावडे परिवार लुकामत का त्याग कर आपके अनुयायी हो गये। अपरंच लाला कर्मचन्दजी शास्त्री से वि० सं० १९०२ से लेकर १९०७ (छह वर्षों) तक मुनि श्रीमूलचन्दजी ने थोकडों, बोल-विचारों तथा जैनागमों का अभ्यास कर विद्वत्ता प्राप्त की, जिससे उन्होंने सत्यधर्म को समझा।
२-पपनाखा - लाला गणेशेशाह और लाला जिवन्दामल ये दो मुख्य श्रावक थे । इन के प्रतिबोध के बाद पपनाखा, गोदलवाला, किला-दीदारसिंह के सब ओसवाल भावडे परिवार सद्धर्म के अनुयायी हो गये।
३-रामनगर - लाला मानकचन्दजी गद्दिया हकीम । यह बत्तीस आगमों का जानकार मुख्य श्रावक था। इसके प्रतिबोध के बाद यहा के सब ओसवाल भावडे परिवार सद्धर्म के अनुयायी होगये।
४-लाहौर - लाला साहिबदित्तामल, लाला हरिराम और लाला बूटेशाह जौहरी आदि ।
५-अमृतसर - लाला उत्तमचन्द आदि ।
६-पिंडदादनखा - लाला देवीसहाय अनविधपारख तथा सारा जैनसंघ ।
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI/ Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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