Book Title: Saddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust

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Page 220
________________ २१२ सद्धर्मसंरक्षक १२. वि० सं० १९१५ में एक श्रावक ने संवेगी दीक्षा ली। नाम भावविजयजी रखा। x १३. वि० सं० १९२३ में एक ने संवेगी दीक्षा ली। नाम विवेक विजयजी रखा । बाद में दीक्षा छोडकर यति हो गया। यति होने पर इसने अपना नाम भगवानविजय रख लिया। १४. वि० सं० १९२४ में एक श्रावक ने संवेगी दीक्षा ली । नाम रतनविजय रखा। १५. वि० सं० १९२४ में दो स्थानकमार्गी साधुओं ने संवेगी दीक्षा ली । ये दोनों आपस में गुरु-शिष्य थे । गुरु को आपने अपना शिष्य बना कर नाम मोहनविजय रखा । इसके शिष्य को भी संवेगी दीक्षा देकर मोहनविजय का शिष्य बनाया । नाम चन्दनविजय रखा । १६-१७-१८. वि० सं० १९२२ में गुजरात में तीन श्रावकों को आपके नाम की दीक्षा देकर उन तीनों के नाम क्रमशः मोतीविजय, भक्तिविजय तथा दर्शनविजय रखे गये । १९. आपके एक शिष्य आनन्दविजयजी नाम के भी थे। यह श्रीविजयानन्दसूरि (आत्मारामजी) से भिन्न थे । यह प्रायः राधनपुर (गुजरात) में रहे। २०. मालेरकोटला (पंजाब) के अग्रवाल बनिये खरायतीमल ने वि० सं० १९३१ में स्थानकवासी दीक्षा छोडकर अहमदाबाद में संवेगी दीक्षा ली । नाम खांतिविजयजी रखा। २१. वि० सं० १९३२ में स्थानकवासी दीक्षा का त्याग कर १५ स्थानकवासी शिष्य-प्रशिष्यों के साथ अहमदाबाद में ऋषि Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013)(2nd-22-10-2013) p6.5 [212]


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