Book Title: Saddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust
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संवेगी दीक्षा ग्रहण बहुत दूर से श्रावक-श्राविकाएं भी इस महामहोत्सव को देखने के लिये भारी संख्या में अहमदाबाद आ पहुँचे । संवेगी दीक्षा ग्रहण
दीक्षा के लिये नियत किये गये दिन में अहमदाबाद के समस्त जैनसंघ के आगेवानों तथा अपार जनता के समक्ष शास्त्रविधि के अनुसार वि० सं० १९३२ (ई० स० १८७५, गुजराती सं० १९३१) के आषाढ मास में आपकी दीक्षा का कार्य सुचारू रूप से सम्पन्न हुआ । गुरुदेव श्रीबुद्धिविजयजी ने श्रीआत्मारामजी के मस्तक पर वासक्षेप डालकर एक सुयोग्य प्रतिभावान शिष्य के गुरु बनने का श्रेय प्राप्त किया और महाराज श्रीआत्मारामजी ने श्रेष्ठ चारित्रचूडामणि गुरुवर्य श्रीबुद्धिविजय (बूटेरायजी) के चरणों में आत्मसमर्पण करते हुए आदर्श गुरु को प्राप्त किया । इस प्रकार दोनों ही गुरु-शिष्य एक-दूसरे को पाकर अपने आपको भाग्यशाली मानने लगे । पूज्य आत्मारामजी के साथ आये हुए मुनि विश्नचन्दजी आदि १५ साधुओं ने इस शास्त्रीय दीक्षाविधि में श्रीआत्मारामजी के चरणों में आत्मसमर्पण करते हए अपनी चिराभिलषित अंतरंग श्रद्धा का परिचय दिया अर्थात् आत्मारामजी को अपना गुरु धारण किया। मार्मिक उपदेश
आज का यही दीक्षा समारोह भारतीय जैन प्रजा और विशेष रूप से पंजाब की जैन प्रजा के लिये शुभ सूचनारूप था । जैनधर्म की तपागच्छ परम्परा के सत्यवीर, सद्धर्मसंरक्षक, परमयोगीराज, बालब्रह्मचारी, तपस्वी, शांतस्वभावी, आदर्शत्यागी, संयमी, चारित्रचूडामणि, आदर्श सदगुरु वयोवृद्ध श्रीबुद्धिविजय
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI/ Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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