Book Title: Saddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust

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Page 200
________________ १९२ सद्धर्मसंरक्षक (बूटेरायजी) ने मुनिराजों को दीक्षा का वासक्षेप देने के बाद मुनिश्री आत्मारामजी को संबोधित करते हुए कहा - "प्रिय आन्दविजय ! तुम्हारी विद्वत्ता, योग्यता और धर्मनिष्ठा पर जैनसंघ जितना भी गौरव माने कम है। तुमने पंजाब देश में जिस सत्यधर्म के पुनरुद्धार करने का बीडा उठाया है; जिस धार्मिक क्रांति का बिगुल बजाया है, उससे मेरी आत्मा को बहुत संतोष मिला है । वहाँ अन्यलिंगी लुंकामतियों के प्रसार के प्रभाव से श्रीमहावीर प्रभु के शासन की जो हानि और अवहेलना हो रही है; उसका स्मरण होते ही हृदय काँप उठता है। परन्तु अब वह समय आ गया है कि तुम्हारे जैसे प्रभावशाली क्षत्रीय नरवीर पुरुष के द्वारा वहाँ शाश्वत जैनधर्म को फिर से असाधारण प्रतिष्ठा प्राप्त होगी। मैं वृद्ध हो चूका हूँ। पंजाब में पुनः जाने की उत्कट भावना होते हुए भी जंघाबल काम नहीं दे रहा । मैंने जो वहाँ कार्यप्रारम्भ किया हुआ है, तुमने अब उसे पूर्ण वेग से पूर्ण करना है। स्थान-स्थान पर गगनचुम्बी विशाल जिनमंदिरों पर लहरानेवाली ध्वजाएं इस शाश्वत प्राचीन-धर्म के वैभव को प्रमाणित करें, इसके लिये तुम लोग अब पहले से भी अधिक उत्साह और परिश्रम से वहां धार्मिक जाग्रति फैलाने का प्रयत्न करो ताकि मैं अपने जीवन में ही यह सब देख-सुन सकूँ । तुम्हारी सत्यनिष्ठा और आत्मविश्वास तुम्हारी सफलता के लिये पर्याप्त हैं। जिस पर मेरा आशीर्वाद तुम्हें सोने पर सुहागे का काम देगा। जाओ पंजाब को संभालो, तुम्हारा कार्यक्षेत्र बहुत विस्तृत है। अन्यलिंगी लंकामतियों द्वारा घोर विरोध का सामना करने के लिये तुम्हारे जैसे क्षत्रीयवीर सेनानी के सिवाय अन्य को सफलता मिलनी कठिन ही नहीं किन्तु असंभव है। मेरी शुभकामनाएं सदा तुम्हारे साथ हैं।" Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013)(2nd-22-10-2013) p6.5 [192]

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