Book Title: Saddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust

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Page 201
________________ संवेगी दीक्षा ग्रहण १९३ महाराजश्री बुद्धिविजयजी के मर्मस्पर्शी सदुपदेश से श्री आनन्दविजय (आत्मारामजी) तथा उनके साथी १५ शिष्यप्रशिष्यों के हृदय उत्साह और हर्ष से भरपूर हो गये । श्री आत्मारामजी ने गुरुदेव के चरणस्पर्श करते हुए कहा "गुरुदेव ! आपश्री निश्चित रहें। आपके आशीर्वाद से सब ठीक होगा । कहा भी तो है “हिम्मते मर्दा मददे खुदा" अर्थात् पुरुष के पुरुषार्थ करने पर प्रकृति उसकी अवश्य सहायता करती है । पुरुषार्थी के हर कार्य में प्रभु सदा सहायक होते हैं । जब आप श्री सद्गुरुदेव का आशीर्वाद सदा हमलोगों के साथ है, तो फिर सब कार्यों में हमें अवश्य सफलता मिलेगी। इसमें सन्देह नहीं है । " पूज्य गुरुदेव बुद्धिविजय (बूटेरायजी) महाराज ने दीक्षित मुनियों के नाम बदलकर नीचे लिखे नामों से संबोधित किया और गुरु-शिष्य का सम्बन्ध इस प्रकार से स्थापित किया । कामती नाम [१] श्रीआत्मारामजी [२] श्रीविश्नचन्दजी [३] श्रीचम्पालालजी [४] श्रीहुकुमचन्दजी [५] श्रीसलामतरायजी [६] श्रीहाकमरायजी [७] श्रीखूबचन्दजी [८] श्रीकन्हैयालालजी [९] श्रीतुलसीरामजी [१०] श्रीकल्याणचन्दजी संवेगी नाम श्री आनन्दविजयजी श्रीलक्ष्मीविजयजी श्रीकुमुदविजयजी श्रीरंगविजयजी श्रीचारित्रविजयजी श्रीरतनविजयजी - श्रीसंतोषविजयजी श्रीकुशलविजयजी श्रीप्रमोदविजयजी श्रीकल्याणविजयजी गुरु का नाम श्रीबुद्धिविजयजी श्री आनन्दविजयजी श्रीलक्ष्मीविजयजी श्री आनन्दविजयजी श्री आनन्दविजयजी श्री आनन्दविजयजी श्री आनन्दविजयजी श्री आनन्दविजयजी श्री आनन्दविजयजी श्रीचारित्रविजयजी Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) / (1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [193]

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