Book Title: Saddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust

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Page 196
________________ १८८ सद्धर्मसंरक्षक वीतराग प्रभु श्रीआदिनाथ के दर्शन करते ही आप तथा आपके साथ अन्य साधुओं के मन आनन्द से विभोर हो उठे । प्रभुदर्शन का निर्निमेष दृष्टि से पान करते हुए ऐसे तल्लीन हुए कि कुछ क्षणों के लिये अपने आपको भी भूल गये । आदिनाथ प्रभु के दर्शन करने के बाद अन्य मंदिरों के दर्शन करने में सारा दिन लग गया, परन्तु किसी को भी भूख-प्यास का अनुभव तक न हुआ । पहाड से नीचे उतरकर आहार-पानी किया और सायं-प्रतिक्रमण करके सब ने विश्राम किया। इसी प्रकार निरंतर कई दिनों तक यात्रा करके सब मुनिराज कृतकृत्य हुए। पालीताना से विहार कर भावनगर, वला, पच्छेगाम, लाखेणी, लाठीधर, बोटाद, राणपुर, चूडा और लींबडी आदि अनेक ग्रामोंनगरों में विचरते हुए वहाँ के सैकडों जिनमंदिरों की यात्रा करते हुए तथा जनता को सद्बोध देते हुए अहमदाबाद पधारे । यहां की जनता ने आप का अपूर्व स्वागत किया। सद्गुरु की खोज में ___ आपने साधुमार्गी मत को विशुद्ध जैन परम्परा से बाह्य अन्यलिंगी होने के कारण त्याग दिया था और प्रभु महावीर भाषित जैनधर्म को अपनाकर भाव से श्रमण, अर्थात् श्रमण भगवान महावीर स्वामी के धर्मानुगामी तो आप वि० सं० १९२१ (ई० स० १८६४) से ही हो चुके थे। परन्तु भगवान की परम्परा का जो वेष है उसे विधिपूर्वक धारण करना बाकी था । "दव्वो भावस्स कारणं" इस युक्ति के अनुसार भावसाधुता के साथ द्रव्यसाधुता का होना जरूरी है। ऐसा विचार करके आपने सुयोग्य गुरु की खोज की । इतने में अहमदाबाद में विराजमान श्रीबुद्धिविजय Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) 1(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [188]

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