Book Title: Saddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust
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सद्धर्मसंरक्षक दीक्षा धारण की है और तपागच्छ को धारण किया है। संवेगी बडी दीक्षा लेने के बाद हम सेठों की धर्मशाला में चले आये थे। बस उनके साथ मेरा इतना ही सम्बन्ध है।
(ऊ) मैंने कर्मवश पंचमकाल में भरतक्षेत्र में जन्म लिया है, वैराग्य भी हुआ, लेकिन शुद्ध गुरु का संयोग न मिला । यह मेरे पूर्वकृत पाप का उदय है। शास्त्रों को देखने, पढने तथा पृच्छना से जो कुछ ज्ञान की प्राप्ति हो सकी वह प्राप्त कर पाया । मात्र यह पुण्य का उदय समझना चाहिये । आगे ज्ञानी जाने ।
(८) गुरुदेव ! गच्छ-कुगच्छ का निर्णय कैसे किया जावे?
मूला ! गच्छ-कुगच्छ का निर्णय महानिशीथ, गच्छाचारपयन्ना, आचारांग, दशवैकालिक आदि सूत्र तथा प्रमाणिक गीतार्थ आचार्य, उपाध्याय, साधु-महाराजों की बनाई हुई नियुक्ति, चूणि, भाष्य, टीका आदि को देखकर, जो गच्छ तथा सामाचारी चतुर्दशपूर्वधर श्रीसुधर्मास्वामीजी की प्ररूपणा के अनुकूल हो, वह गच्छ तथा सामाचारी स्वीकार करना ही श्रेयस्कर है और उसी पर ही श्रद्धा करना सम्यक्त्व का लक्षण है । गच्छ के नाम पर दृष्टिराग, नामभेद, झगडा यथार्थ नहीं है। गच्छ का नाम चाहे कुछ भी हो, सामाचारी शुद्ध होनी चाहिये । आज तो मुनिधर्म का पालन करनेवाला, तपागच्छ की शुद्ध सामाचारी पालन करनेवाला कोई विरला ही है। मेरी श्रद्धा मेरे पास है, दूसरे की उसके पास है। साक्षी तो केवली भगवन्त हैं।
(९) गुरुजी ! सामाचारी किसे कहते है?
मूला ! सामाचारी उसे कहते है जो मुनि के शुद्ध आचारपालन करने के लिये उपयुक्त हो । जो ज्ञानाचार, दर्शनाचार,
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) 1(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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