Book Title: Saddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust
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पंजाब में पुनः आगमन और कार्य गये और अमरसिंहजी के पास जाकर कहा - "आप चले क्यों आये ? अमृतसर चलकर चर्चा करिये ।" तब अमरसिंह ने कहा कि- "बुटेराय क्या चर्चा करेगा, उसका चर्चा करने का सामर्थ्य ही क्या है ? हमने अनेक बार उसे झूठा प्रमाणित किया है" इत्यादि कहकर उसने फिर टालमटोल कर दिया । तब देवीसहायजी ने समझ लिया कि अमरसिंह की चर्चा करने की हिम्मत नहीं है। यह मात्र शेखी ही बघारता है। राग-द्वेष का पिंड है। लाचार होकर वह अपने घर पिंडदादनखा वापिस चला गया । बूटेरायजी भी जंडियाला-गुरु में चले गए । जब अमरसिंह को मालूम हुआ कि आप अमृतसर से विहार कर गए हैं तो कुछ दिनों बाद वह अमृतसर आ पहुंचा । जब आपको पता लगा कि अमरसिंह अमृतसर पहुंच गया है तब आप भी दो साधुओं को अपने साथ लेकर अमृतसर आ गये।
अमरसिंह ने भी जहां-जहां उसके योग्य साधु थे उन सबको अमृतसर में बुला लिया । पच्चीस-तीस साधु इकट्ठे हो गए। इन लोगों ने पोथी-पन्ने भी बहुत इकट्ठे किये । आपने सोचा कि हमारे पास भी शास्त्रों की कमी नहीं है, जब जरूरत होगी तब मंगवा लेंगे। चर्चा का दिन निश्चित हो जाने पर देवीसहाय को बला लेंगे
और शास्त्र भी मंगवा लिए जावेंगे। आपने अमरसिंह को चर्चा का दिन निश्चय करने के लिए कहला भेजा । उसने कहला भेजा कि "हम रात को पानी रखने की चर्चा नहीं करेंगे, पर मुखपत्ती और
१. वि० सं० १८९९ (ई० स० १८४३) को स्यालकोट में अमरसिंह ने आपके साथ चर्चा की थी, उस-से वह अपने पक्ष की निर्बलता को जानता था । इसलिये चर्चा से लाभ की आशा न होने से वह चर्चा को ठालमठाल करके बचने की चेष्टा में था।
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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