Book Title: Saddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust
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चमत्कार
१३१ प्रतिमा रामनगर के श्रावक गंडूशाह गद्दिया को दिला दी, जो आजतक उनके वंशजों के पास है। पाकिस्तान बनने के बाद ये लोग लुधियाना में निवास करते हैं।
वि० सं० १९२४ (ई० स० १८६७) का चौमासा आपने रामनगर में किया । चौमासे उठे आपने यहाँ दो लुकामती साधुओं को संवेगी दीक्षा दी। ये रूढा-ऋषि का शिष्य ऋषि गुलजारीमल और उस का शिष्य ऋषि चन्दनलाल थे। ये दोनों गुरुचेला उत्तर प्रदेश में जिला मेरठ के बिनोली गाँव के थे । संवेगी दीक्षा देकर आपने इनके नाम क्रमशः मोहनविजय और चन्दनविजय रखे । आपने मोहनविजय को अपना शिष्य बनाया और चन्दनविजय को मोहनविजय का शिष्य बनाया ।
दीक्षा देने के बाद आप यहाँ से विहार कर किला-सोभासिंह पधारे । वहाँ के नवनिर्मित जिनमंदिर की प्रतिष्ठा वि० सं० १९२४ में कराकर श्रीशीतलनाथ प्रभु को मूलनायक स्थापित किया। यहाँ से विहार कर आप मालेरकोटला, पटियाला, सामाना, सुनाम आदि नगरों में विचरे । कुछ दिन स्थिरता कर आप लम्बा विहार कर पिंडदादनखाँ पधारे और वि० सं० १९२५ (ई० स० १८६८) का चौमासा वहाँ पर किया । पश्चात् वि० सं० १९२६ वैशाख सुदि ६ (ई० स० १८६९) को यहा श्रीमंदिरजी की प्रतिष्ठा कराकर श्रीसुमतिनाथ भगवान को मूलनायक स्थापित किया । यहा पर जिनमंदिर अति प्राचीन काल से विद्यमान था तथा श्रावक भी इसी धर्म के उपासक थे । पश्चात् आप गुजरांवाला में पधारे और वि० सं० १९२६ (ई० स० १८६९) का चौमासा गुजरांवाला में किया ।
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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