Book Title: Saddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust
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कुछ प्रश्नोत्तर
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किन्तु उपर्युक्त गुण रहित को 'समणसंघ' नहीं कहना चाहिये । उसे तो हड्डियों का संघ कहना चाहिये । कहा भी है - " एग साहू एगा य साहुणी सावयो सड्डो वा । आणाजुत्तो संघो सेसो पुण अट्ठिसंघो य ॥ "
अर्थात् एक साधु, एक साध्वी अथवा एक श्रावक, एक श्राविका भी यदि वीतराग केवली की आज्ञा से युक्त है वह संघ है। बाकी तो हुडियों का पुंज है।
(अ) यदि किसी मिथ्यात्वी व्यक्ति में दया आदि गुण विद्यमान हैं तो वह अनुमोदना के योग्य नहीं हैं। कारण यह है कि उसके गुणगान करने से मिध्यात्व की वृद्धि होती है। अनजान भोले लोग उनके एक गुण के साथ अनेक अवगुणों का भी अनुकरण कर अपना पतन कर बैठेंगे, इससे मिध्यात्व की वृद्धि होगी, महादोषों की प्राप्ति होगी। दूध को दूध माने और विष को विष जाने। दूध को ग्रहण करे, विष का त्याग करे । यदि विषयुक्त दूध की प्रशंसा करे,
एतद् रत्नत्रयनाम । अस्य सम्पत्तौ सर्वकर्मविप्रमोक्षलक्षणो मोक्षः || तदुक्तम् सम्यग्दर्शन- ज्ञान- चारित्राणि मोक्षमार्ग: [ तत्त्वार्थ १/१ ]
अर्थात् १ - श्रीवीतराग सर्वज्ञ जिनप्रभु द्वारा कथित वचन यथावत् (जैसे हैं वैसे ठीक-ठीक) जानना सम्यग्ज्ञान है। २ ऐसे ज्ञान से प्रधान (जैसा जिनेश्वरदेव ने फरमाया है) यह ऐसा ही है, ऐसी श्रद्धा सम्यग्दर्शन है । ३- श्रीजिनेन्द्र प्रभु ने जैसे कहा है वैसा ही आचरण करना सम्यक्चारित्र है । यह रत्नत्रय है ।
इस [ रत्नत्रय ] की प्राप्ति से सर्वकर्मक्षय रूप लक्षणवाला मोक्ष है । अतः तत्त्वार्थसूत्र के अध्याय १ सूत्र १ में स्पष्ट कहा है कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र तीनों मिलकर मोक्षमार्ग है।
इसीलिये कहा है कि "जो जिनागम के निर्मल ज्ञान से प्रधान ऐसे सम्यग्दर्शनसम्यक्चारित्र से युक्त हो- उसे संघ कहना चाहिये । इसके बिना संघ तो हड्डियों का ढेर ही है।"
Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) / (1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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