Book Title: Saddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust
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कुछ प्रश्नोत्तर
१७३ मिथ्यात्व में । जैसे मद्यपान करनेवाले जीव की विपरीत बुद्धि हो जाती है वैसे ही इस- १-हूंडावसर्पिणी, २-पंचमकाल, ३भस्मग्रह, ४-मिथ्यात्व, ५-भरतक्षेत्र इन पाँचों बातों के मिल जाने से कृष्णपक्षी मनुष्यों की अधिकता से सत्यधर्म को समझनेवाले अल्प हैं और समझकर आचरण करनेवाले तो अत्यल्प हैं।
(ई) यदि भवस्थिति परिपक्व हो, धर्मप्राप्ति का अवसर मिले और पुण्यानुबन्धी पुण्य का उदय हो तो जीव को सच्चे देव-गुरुधर्म की श्रद्धा प्राप्त करना संभव है परन्तु जब कदाग्रह छूटे तब न ! भवभीरू सरल जीव ही सच्ची श्रद्धा प्राप्त करने का पात्र है। पर स्व-कदाग्रह छोडना अति दुष्कर है। यही कारण है कि सुगुरु और श्रद्धावान जीव तो कोई विरला ही होता है। मतांध कदाग्रही जीव बहुत हैं। धन्य वे जीव हैं, जो केवली-प्ररूपित धर्म को पाते हैं।
(उ) जो जीव सम्यक्त्व सहित हो, वही अणुव्रतों तथा महाव्रतों के योग्य होता है। सम्यक्त्व युक्त महाव्रतों अथवा अणुव्रतों सहित जीव प्रत्यक्ष मिल जावे, यदि उस की प्रमाद से भी यथायोग्य भक्तिविनय न की जावे अथवा जानबूझ कर उपेक्षावृत्ति की जावे तो अपना सम्यक्त्व मलीन होता है अथवा मूल से भी चला जाता है।
(४) पूज्य गुरुदेव ! यदि कोई यह कहे कि मुझे तो खबर नहीं पडती कि मैं मिथ्यादृष्टि हूँ या सम्यग्दृष्टि हूँ? तो इसको जानने का उपाय क्या है ?
मूला ! यदि तुम को अपने लिये खबर नहीं पडती तो तुम को दूसरे की भी खबर नहीं पड सकती। इसको जानने का उपाय तो यह है कि कदाग्रह, राग-द्वेष को छोड कर, पक्षपात का त्याग कर आत्मार्थी बनो और पवित्र धर्मार्थी पुरुषों की संगति करो। आगम
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
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