Book Title: Saddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust
View full book text
________________
सद्धर्मसंरक्षक
१५०
डालते । श्रावक लोग भी इनके साथ बहुत आवेंगे । इसलिये ऐसी चर्चाओं में लाभ के बदले हानि होने की अधिक संभावना है क्योंकि ऐसी चर्चाओं में प्रायः झगडा हो जाया करता है । अतः निर्णय कुछ भी न हो पायेगा और संघ में फूट पड जावेगी । कोई मानेगा भी नहीं । इसलिये तुम लोग ऐसा करो कि " सूत्र - टीका आदि ग्रंथों में मुखपत्ती बाँधने के जो पाठ हैं, वे सब लिखकर मेरे पास भेज दो। मैं उसे मूलचन्दजी के पास ले जाऊंगा और उनके पास से उत्तर मँगवा कर तुम्हें भेज दूंगा । दोनों तरफ से प्रश्नोत्तर मेरे पास भेजते जावें और मैं उनको आप दोनों के पास भेजता रहूंगा। इस प्रकार तुम दोनों का पत्राचार चलता रहेगा । जब चर्चा का अन्त आ जावेगा, तब हम दो-चार सयाने - समझदार भाई और दोनों पक्ष के साधु इकट्ठे बैठ जावेंगे, तब निर्णय कर लेवेंगे, जिसे झूठा समझेंगे उसे संघ शिक्षा देगा ।"
तब मुनि रतनविजयजी आदि साधु बोले कि "पहले मूलचन्दजी प्रश्न लिखकर देवें ।" नगरसेठ प्रेमाभाई ने कहा कि “चर्चा तो तुम करना चाहते हो, मूलचन्दजी ने तो कोई चर्चा के लिये कहा नहीं । इसलिये वादी तो तुम लोग हो । वादी प्रश्न करेगा तो प्रतिवादी उसका समाधान करने के लिये उत्तर देगा । अत: तुम लोगोंको ही प्रश्न लिखकर मुझे देने चाहिये । तब मैं उनसे उत्तर मँगवा कर तुम लोगों के पास भेज दूंगा, तब चर्चा चालू हो जावेगी । फिर भी यदि तुम लोगों की यही इच्छा है कि पहले श्रीमूलचन्दजी प्रश्न लिखकर दें तो इसके लिये मैं उनसे पूछूंगा । यदि गणि मूलचन्दजी लिखकर भेज देंगे तो मैं तुम्हारे पास भेज दूंगा। तुम उसका उत्तर लिख कर दोनों चिट्ठियाँ मेरे पास भेज देना ।"
Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5
[150]