Book Title: Saddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust
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सद्धर्मसंरक्षक उत्तर व्योरेवार लिखकर दो कि कौनसे शास्त्र में और कौनसी सामाचारी में मुँहपत्ती मुख पर बाँधनी लिखी है ? मुख बाँधने की परम्परा कहाँ लिखी है ? कौनसे आचार्य ने कौनसे संवत् में कौनसे नगर में मुखपत्ती बाँधनी आरंभ की? स्पष्ट लिख कर भेजो।"
उपर्युक्त प्रश्न लिख कर गणि मूलचन्दजी ने नगरसेठ के पास भेज दिया और सेठ ने रतनविजय के पास भेज दिया । पर इस का उत्तर उन लोगों ने कुछ न दिया । पन्द्रह-बीस दिन तक उत्तर की प्रतीक्षा कर गणिजी ने फिर पत्र लिखकर सेठजी को भेजा। पर उसका भी कोई उत्तर न मिला । अतः यह चर्चा जन्मते ही मर गई। यह प्रसंग वि० सं० १९२९ (गुजराती १९२८, ई० स० १८७२) का है।
नगरसेठ हेमाभाई की बहन उजमबाई ने वि० सं० १९२९ (ई० स० १८७२) में अपने रहने का घर श्रीसंघ को धर्मध्यान करने के लिये ताम्रपत्र लिखकर भेट किया और पूज्य बूटेरायजी, गणि मूलचन्दजी आदि मुनिराजों का यहा प्रवेश कराया । यह स्थान आज भी रतनपोल-अहमदाबाद में उजमबाई की धर्मशाला के नाम से प्रख्यात है।
नगरसेठ प्रेमाभाई हमेशा दोपहर को दो बजे सेठ के वंडे से पालकी मैं बैठ कर उजमबाई की धर्मशाला में गुरुमहाराज के पास सामायिक करने आया करते थे और प्रतिदिन सामायिक के लिये घर से जाते हुए पालकी में चवन्नियों, आनों, पैसों की दो थैलियां भरकर अपने साथ लाते तथा दोनों तरफ (दांयें-बायें) गरीबों को दान देते थे । वि० सं० १९२९ (ई० स० १८७२) का चौमासा पूज्य बूटेरायजी और मूलचन्दजी ने अहमदाबाद में किया ।
Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013)(2nd-22-10-2013) p6.5
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