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कारिकाः । ]
सभाप्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
तीर्थप्रवर्तनफलं यत्प्रोक्तं कर्म तीर्थकर नाम | तस्योदयात्कृतार्थोऽप्यर्हस्तीर्थं प्रवर्तयति ॥ ९ ॥
अर्थ - ज्ञानावरणादि आठ प्रकारके कर्मोंमें एक नामकर्म भी है । उसीका एक भेद तीर्थंकर नामकर्म है । उसका यही फल - कार्य है, कि उसका उदय होनेपर जीव तीर्थ-मोक्षमार्गका प्रवर्तन करता है । अरहंत भगवान् के इस तीर्थकर नामकर्मका उदय रहता है । यही कारण है, कि भगवान् कृतकृत्य होकर भी तीर्थका प्रवर्तन-मोक्षमार्गका उपदेश किया करते हैं ।
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भावार्थ:- केवल तीर्थकर नामकर्मके उदयवश होकर विना इच्छाके ही भगवान् उपदेश करते हैं । अतएव उनके उपदेश और कृतकृत्यतामें किसी प्रकारका विरोध नहीं आता तीर्थकर कर्मके कार्यको दृष्टान्त द्वारा स्पष्ट करते हैं
तत्स्वाभाव्यादेव प्रकाशयति भास्करो यथा लोकम् । तीर्थप्रवर्तनाय प्रवर्तते तीर्थकर एवम् ॥ १० ॥
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अर्थ - जिस प्रकार सूर्य अपने स्वभावसे ही लोकको प्रकाशित करता है, उसी प्रकार तीर्थकर नामकर्मका भी यह स्वभाव ही है, कि उसके उदयसे तीर्थका प्रवर्तन हो । अतएव उसके उदयके अधीन हुए अरहंत सूर्य समान तीर्थप्रवर्तनमें प्रवृत्त हुआ करते हैं ।
भावार्थ - वस्तुका स्वभाव अतर्क्य होता है- --" स्वभावोऽतर्क गोचरः " । जिस प्रकार आदि पदार्थ अपने स्वभावसे ही अतर्क्य कार्य कर रहे हैं । उसी प्रकार कर्म अथवा तीर्थकर प्रकृति भी स्वभावसे ही कार्य करती है ।
सूर्य
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इस प्रकार तीर्थकर प्रकृतिके उदयसे धर्मका उपदेश देनेवाले तीर्थकर इस युगमें वृषभादि महावीर पर्यंत २४ हुए हैं । इस समय अंतिम तीर्थंकर महावीर भगवान्का तीर्थ चल रहा है । अतएव उन तीर्थकर भगवानका यहाँ कुछ उल्लेख करते हैं:
यः शुभकर्मासेवनभावितभावो भवेष्वनेकेषु ।
जज्ञे ज्ञातेक्ष्वाकुषु सिद्धार्थनरेन्द्रकुलदीपः ॥ ११ ॥
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अर्थ - अनेक जन्मों में शुभ कर्मों के सेवन से जिनके परिणाम शुभ संस्कारोंसे युक्त हो गये थे, और जो सिद्धार्थ नामक राजाके कुलको प्रकाशित करने के लिये दीपक के समान थे, उन्होंने इक्ष्वाकु नामक प्रशस्त जातिके वंशमें जन्म धारण किया था ।
भावार्थ- - भगवान् महावीरस्वामीने इक्ष्वाकु वंशमें जन्म लिया था । और उनके पिताका नाम सिद्धार्थ था । उनके भाव - परिणाम अनेक भव पैहलेसे ही शुभकर्मो के करनेसे उत्तरोत्तर अधिकाधिक सुसंस्कृत होते आ रहे थे ।
१ - क्योंकि सिंहकी पर्यायसे ही शुभ कर्मोंका करना और उनके द्वारा उनकी आत्माका सुसंस्कृत होना शुरू हो गया था ।
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