Book Title: Ratnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1 Author(s): Khubchand Shastri Publisher: Digambar Jain Samaj View full book textPage 9
________________ १४१ १४६ एनाओं तथा किस २विशेषणसे किस ५५ उपगूटन और उपहरण तथा विधि निरोप विपर्यामका पनिहार होता है। ४ गुणो । परस्पर सम्बन्ध तात्पर्य,माधपिता आदि ४ च्याएं ८८ व्यासादिक स्व-पर विषय | हेतु , हेतुमाष और ४ अनुयोग ८ स्थितीकरण | कारिका नं०१६ प्रयोजन बादिपुराय के पथ से तुलना । ८. सम्याराप्टियो का चा. पहली प्रति संपोस्त का लक्षण कारिका नं०१०। प्रयोजन १० शम्नका मामान्य-विशेष अर्थ राज्यों का भय ६.१ तापर्य। सात्पर्य १४ वारसय भगका लक्षण कारिका नं०१७ कथित विषयों में माध्यसाधन माय ५ नात्पर्य। महताओसे पूर्व अंगों के वर्णनका कारण प्रमानना अग। कारिका २०१८ निःशहित अंग का स्वरूप कारिका २०११ १६ शब्दार्थ प्रयोजन और शब्दों का अर्थ ६६ तात्पर्य प्रात्पर्य ७ निसर्गज अधिगमज सम्यादर्शन सात भय चार छायोग और सम्बग्दर्शनक मेर भेणिकके वास्मघात और उसके कारणपर विचार ५०० प्रशमादक लक्षण और उनका स्टान्स सम्यक्त्वके मूल पायतन जिनदेव और उनकी आस्लिमाचि और निशक्लिादि गुग प्रतिमा १०२ सम्यग्र टके असंयमका आशय निःक्ष मेंगा वमन | कारिका ने० १२ १३ प्रकारान्तरसे सम्यग्दर्शन के बाठ गुण शब्दों का अर्थ २०४ सम्यग्रष्टिकी अधिका फल वापर्य १०६ सम्यग्दर्शन के आठ अंगोंमें प्रसिस बहार पर्यायका कारण १०५ उदाहरणरूप यन्त्रियोंके माम बांसारिक सुखकार विशेषण और कारिका न०१६,२० कर्मों के पार भेर मंजन घोर मादि की बाएं स्नान शल्य और उससे सम्यक्त्ाका मंग ११३ वत्पर्य निर्विचिकित्सा अंग। कारिकान०१३ १४ च्याओमें रममेद । प्रयोजन ११५ अंगहीन सम्बनशनकी निष्फलता मा का सामान्य विशेष अर्थ ११५ कारिका नं०२१ एसयाली मुनिराके प्रति व्यवहार १९. क्रियाओं दो फल सुख्य और गौण वात्पर्य ११७ राम्हों का भामान्य विशेष वर्ष भाई और उत्तराधम हेदुहेतुमभाव ११८ तात्पर्य-विपयकी संगति विपाकता के कारण। १८ लोक मुटता अथवा भागम भूसा प्रभूमि । कारिका न.१४ ११६ कारिका नं०२२ बामायतनों के प्रकार १२१ मिथ्यामान्यताओं के उत्तम, मया एणाम अनी चारो निहरणका अन्तर्भाव १२२ जघन्य प्रकार सपा और सात्पर्य । १२४ सम्यग्दर्शन के अध्याति अतिवाति fvarष्टियों के मान भेय २५ असंभव दोषांका कारण नि:शांकलाit और शमादि गुणों का शब्दार्थ नात्पर्य, भूत चतुष्टयसे धर्म मानना १२७ लोकमूदता है। अंग 1 | कारिका नं० १५ और मूडता तीन प्रकार हैं भयका सारPage Navigation
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