________________
[
२७
]
चुनौती दे दी। इसी प्रकार नारी का सच्चा प्रेम पुरुष के प्रति कथा में प्रकट किया गया है। ___कथा के अन्तिम भाग में करुणा और प्रेम का बड़ा ही अद्भुत मिश्रण हुआ है और वह भी नागवंती का विवाह अन्य पुरुष के साथ होने की पृष्ठभूमि में । यद्यपि नायक और नायिका का प्रेम बड़ी ही भावुकतापूर्ण शैली में व्यक्त किया गया है तथापि यह प्रेम करुणा की रागिनी से ओतप्रोत है। अत: विवाह अथवा अन्य किसी शुभ कार्य के अवसर पर इस गीत का गाना अशुभ माना जाता है। नागजी, भत हरि आदि के गीत और दोहे सुन कर लोगों के हृदय में अन्ततः एक प्रकार के वैराग्य की भावना उत्पन्न हो जाती है। ___कथा में जहां तक उस काल की सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों का प्रश्न है, ऐसा प्रतीत होता है कि दुष्काल पड़ने पर शासक-वर्ग प्रजा को सहायता पहुंचाना अपना फर्ज समझता था। इतना ही नहीं अपितु प्रजा की भलाई के लिये वे स्वयं उसके साथ दूसरे देश में जाकर वहां के शासक से जान-पहिचान करते और अपनी प्रजा के लिये समुचित व्यवस्था करवाते थे। प्रजा और राजा का यह घनिष्ठ संबंध यहां तक ही सीमित नहीं था, चोर लटेरों को दलित करने के लिये उनके पुत्र स्वयं जोखिम उठा कर उनका पीछा किया करते थे। धोलवाड़ा के राज्य का आतंक उसके पुत्र स्वयं नागजी ने समाप्त किया था। नागजी का स्वयं खेत में जाकर पहरा देना और उनकी भावज परमलदे का उनके लिये खाना लेकर जाना आदि इस बात को प्रमाणित करता है कि उस काल का शासक-वर्ग कितना कर्मठ और समाज के साथ घुला-मिला था। भाषा-शैली
कथा की भाषा का जहां तक प्रश्न हैं वह प्रसाद-गुणयुक्त और सरल है तथा बोलचाल की भाषा के अधिक समीप होते हुये भी उसमें साहित्यिक सौन्दर्य का अच्छा निर्वाह हुया है । ठेट राजस्थानी के शब्दों के प्रयोग से सामाजिक वातावरण बनाने में कथाकार को अच्छी सफलता मिली है। काव्य-सौंदर्य को दृष्टि से कुछ दोहे राजस्थानी साहित्य को अमूल्य निधि कहे जा सकते हैं क्योंकि उनमें भाव-गरिमा के साथ-साथ हृदय की तड़फन और व्यंग्यात्मकता का सन्दर सम्मिश्रण हुआ है । उदाहरणार्थ कुछ दोहे इस प्रकार हैं
सज्जन दुरजन हुय जले, सयणा सीख करेह । धरण विलपंती यु कहै, प्रांबा साख भरेह ॥ १६ ॥ नागजी नगर गयांह, मन-मेलू मिळीया नहीं । मिळीया अवर घणांह, ज्यासु मन मिळीया नहीं ॥ १७ ॥ पृ० १५१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org