Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 03
Author(s): Lakshminarayan Dixit
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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२२६ ]
परिशिष्ट २ (ख)
कृमाङ्क
पृष्ठाङ्क पद्याङ्क ७४ अंबर तारा डिग पडै १२६-२८८ ७५ अंही अंहो कुंवरजी रीसालूवा
६७-१५०
७६ क्यारा केसर नीलडा ८५-६१ ७७ क्यारी केसर द्राषकी (टि.) ८४-० ७८ क्युं चाल्यो रे मानवी (टि.) ७२-१२ ७६ कडकड नांखू काकरा ११४-२२० ८० कडकड बाहुं काकरा (प.) २१३-३६ ८१ कथा रसिक कविरायको ५१-४ ८२ कर चोदा दारु घणो (टि.) ६२-३१ ८३ कर छीदो क्युं कर पीवै (टि.)
६३.२७ ८४ कर छीदो पाणी पीवं (टि.) ९४-१७ ८५ कर ढीला घट सांघूड़ा ६१-१२५ ८६ करतूं कर मेलाविया १००-१५७ ८७ कवर नई को कारण ६१-२५ ८८ कवियां मन जय पांमवा १४४-३४६ ८६ कस्तूरीरा गुण केता (प) १६७-६ ६. काई यौवनमै मतीयां (प.) २१४-५६ ६१ कागद वाचन भेजीयो १४०-३३९ १२ काची कली मत लूबिय ८६-१११ ६३ काठो तोडातां जणे (प.) २०६-७७ ६४ कामण कारीगरतणी ११०-२०८ ६५ कामण होयडा कोरणी ६४-१३४ ६६ काम विचारीने कहो ६६-१४२ ६७ कारीगर किरतारका १०८-१६१ ६८ काला मुहकै कागले (टि.) १०८-४४ ६६ काला मुहरा कागला (प.) २१२-२८ १०० काला मृग उजाडका (टि ) ७०-५ १०१ , , , (टि.) ७१-४ १०२ काला मृग ऊजाडका (प.)
१६६-२३ १०३ काला रे मृग उजाडका (टि.) ७०-६
कृ०
पृ० प० १०४ काला हरण उजाडरा (प.)
२११-६ १०५ काली कांठल भलकीया १३३-३०९ १०६ काहां चाल्या वे राजवी (टि.)
७३-० १०७ काहा चालो रे राज (टि.) ७२-८ १०८ किण ऐ(प.) २१२-१७ १०६ किणस्यूं राजा थे रम्या ७५.६८ ११० किणे प्रांबा झंझेडीया (प.)
२०१-४३ १११ किसका वै प्रांबा प्रावली ६०-११२ ११२ किहां गया कुंवरजी प्रभातका
८८.१०२ ११३ कोण ए लोयण लोइया (टि.)
६८.३५ ११४ कोण मेरा माला भंगीया (प)
२१२-२४ ११५ कोण ही लोयण लोईया (टि.)
९८.२६ ११६ कुण छै बाल वडी ६२.३३१ ११७ कुण तु इहा प्रायौ अठ ७२-६१ ११८ कुण राजा रौ लाडली (प.)
१९८-१२ ११६ कुमर कहैजी गोरीया ६३-३७ १२० कुमर चाल्यौ सामो जवे ८१-८१ १२१ कुमर सूणने चीतवै ६२-३३ १२२ कुलवटनी कामणि तणी ६४-४१ १२३ कुवर कहै अहो हीरणजी ८३-८८ १२४ कुवरजी छाया माहरी ८३.८६ १२५ कुवरजी सोच घणो कीयो ८८-१०४ १२६ कुवरजी हव इम कित करी
१२६-२८० __१२७ कुवर भलै घर प्रावियो (टि.)।
१४०-६१
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