Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 03
Author(s): Lakshminarayan Dixit
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 317
________________ २४८ ] परिशिष्ट ३ जांण न पाई हठमला, नवि पूगो मूझ डाव | जे हुं मारची जांणतो, तो करती कटाऱ्यां घाव । - १०८-१९६ सोनारा । - १७० - नीं० विसाल । जांणे नागण होडले, पंभां जांणे मान सरोवरे, मीलप्यो हंस सेझां श्राई सुंदरी, छुटो गज जांणे हंस मलपीयों, सर मांन जांन मांणी रतड़ी, ते न लाई वार । छंछाल ।। - १३३-३११ महारां । - १७१ नी० श्रम विछोहोतं कीयो, तो करज्यो भरतार ॥ - १६१-६३ जाय जसो जुग छेह, पाछा प्राय जासी नहीं । नाला विच बॅसेह, चले न वातां कीजसी ॥ - १६१-६२ जावो जीभां ना कहूं, वधो सवाई थ ऊगडसी यां प्रावीयां हता रथां को हट ।। - १५१-१४ जे नर रूपे रूपड़ा, ते नर निगुण न हुवंत । जीमण भोजकुंमार का, मोह्यौ मन तन कंत || जे पर पूरषां कामनी, होलमील बेलणहार । ते पति ने काकर समो, गिणे नित की नार ॥ ९३ १३१ जैसा सूत्र ज्यूं बाल्हा (लहा ), जेसा प्रवर न कोय | विण जग मावीता तणौ, सूखमें दुष को जोय ।। जोगीडा रसभोगीया, भर-भर नयण मत रोय बे । श्रासी (स्त्री) मजांणो प्रापरी, घर तुंमारा जोय बे ।। जोवण जोगी जोड | - १३२-२६८. - १०५-१७५ - १७६-११० जोवन चढीयो जोर ---१७८-६१ जो सूरज प्राथूण में, उगे दिन में हजार बे । नाग न जो सीतलपण करे, तो पिणहूं नहीं बार वे ॥ ---८३-८४ ज्यू पितुं जपे तुं बरो, कालो गोरो कथ । तेहबो हुकम चढाईये, सीस सदा झड पडत घावरत मनुं तुच्छ नीर झ कोच Jain Education International तड़फड़त ट ड -१३३-३१३ समरथ ॥ - १३१-३०२ टिपटिप टपोयांह, विण बादल बुछुटीयां । प्रांख्यां श्राभ थयांह, नेह तुमीण नागजी ।। - - १५७-३९ भोन । मीन ॥ --- ३८-२६८ डाकण नहीं गिवार, सिहारी हूंती नहीं । सलती मांझल रात, खरी सिहारी हुय रही । - १५८-४८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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