Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 03
Author(s): Lakshminarayan Dixit
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 322
________________ परिशिष्ट ३ [ २५३ वै तुमौणा चोहार, जीव्या नितंही मांणीया ।। -१५५-३३ मामण प्यारी अंक पर, पीतम परस प्रजंक। बंक सरीर बिलांसमै, लसत कबूतर लंक ।। -४९-३८६ भीमण भूल न बोल, भंवरो केतकीयां रमै। जाण ममीठ चोल, रंग न छोडे राजीयो ॥ --१५७-३८ मद वेरी अगोयारमो। -१७८.६. मन चित बहुतेरीया, किरता करे सु होय । उलटी करणी देवरी, मती पतीजो कोय ।। -१४५-१ मंगल जारी मागरण, चोला छोड कुचीन । चाले मन पिउ नहि गिण, ज्यू मदमातो फोल ।। -१३४-३१६ माणस ते नही ढोरडा, पर-त्रीय राषं नेह बे।। नारी पत छोडो तुरत, पर-पूरुषासू नेह वै ॥ -६२-१२६ माय बीडांणी पिता पारकां, हम ही बिडाणां जाय बे। षेवटीयाकी नाव ज्य, कोइक संजोग मीलाय बे।। -७०-८ मालू ! थारी मुलकम, कासू भला कहो। नर नागा नारी नलज, रोजे केम रहौं। -१८४-१३० मांटी सूती छोडने, जावे पेलण नार। पर रस भीनी कॉमणी, ते हूई जगमे षराब ।। -११८-२३८ माणस देह विडाणीया, क्या हौंदु मूशलमान । आग जलाया कायने, हींदु धर्म निदान ।। -१०६.२०१ मेहा घोर कर प्रणमाप । - १५३-२ गीत मो मन मलियो बालमां, कहक प्यारा कंत । बीसत यक-सम दूधमैं, मानु नोर मिलंत ॥-२६-२२४ मो मन लागो साहीबा, तो मन मो मन लग। ज्यु लुण धोलुधो पांगीयां, न्युपाणी लुण धोलग ।। -१३४-७३ मोलो लोहो -१८५-१४६ मो लंकाने मूदड़ी, अबल बताव माण । -१७६-७७ मो सरषी निगुणी तणे, कारण काया छोड । हुँ प्रभागणी जीवती. रहीय करडका मोड ।। -१०८-१६२ म्यारा! मारा मुलकरा, वागांरा पाषाण । पालीजां सुणजो प्रबे, श्रवषां कथन सुजाण ॥ -१८४.१३९ यण प्रकार सोहत महल, दमकत छवि उद्योत । दीपग लय प्रतिबिंब दुत, हिलमिल बगमग होत ।। -१२१-१७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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