Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 03
Author(s): Lakshminarayan Dixit
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 315
________________ २४६ ] परिशिष्ट ३ - १०८-१९१ भोज । - ३-१७ कारीगर फिरतार का, छयल किया तसू हाथ । जीहा पीउ थांरी छांहडी, तीहां पोउं मांहरो साथ ॥ काल हुते काची कली, भई सुपारी काली कांठल भलकीया, बीजलीयां चमकती मन मोहीयो, कंचू छाकी कुंकुंवरणी देह, टीकी काजलीयां एह तुमीणा नेह, सू नित मेलो कुच कर श्रीखव भुज पटी, अहेर पती उन नयननके घाव कूं, श्रोखद कुच जा भुज जा प्रहर जा, तन धन नागो सयण गमाइयो, अब रहि र कूड कपटनी कोथली, रमती पर लजां संकण जान ही, प्रीतम मन कुल मैं दोय कुंभार, वांसोलो ने ने हुं हुंती सुथार, नवो घड लेवत कुलवटनी कामणि तण, सासरीयों इश्वर गत जाणे घरी, श्रादर पुं ( कुं) जी इ नरषे कांमणी, प्राडे गुंघट केहनी अस्त्री न जांणज्यो, कुड़ो नेह पूत्र पराई नारीयां न धरे एक ही कंत बे ।। - १०४ १७१ कोड छडाया कागला, पीउडा कारण पाय | विधना हंदी वातड़ी, जब करो मूझ माय ॥ - १२२-२६६ कोरण उत्तराधिकरण, घोरण ची (चो) ली कुवाल | रचंत बे । घणीयां घण साले धणी, वणीयो इम वरसाल ॥ - ११६-२३० ग गयय | देय ॥ थई । नागजी ।। - १५५-३४ दे ताव | एह लगाव ।। १५३-२६ जाह । काह ।। - १६१-६१ Jain Education International जोबन करसी पुरुषांह | पिछांह | बींझली । - १३३-३०६ नागजी ।। - १६२-७२ सीरदार । नार ॥ - १३४-३१४ झुराय । खाय ॥ प्राय । - १७७-८४ गरदन जसकी गांगडी, तक कुरज तरारां । -- १७१ - नीं० गुनेहगार हुं रावलो, साहिब चरणां दास । छोरूं कुछोरूं हुवं, तात न छोडत श्रास ॥ गोरीदा गळ- हाथड़ा, नागकुंवर कर सेल । எரிஞ் चंदन षडं, अवर विलंबी वेल ॥ - १५०-१३ - ६४-४१ For Private & Personal Use Only गोरी बांह छातीयां, नागकुंवर न जांणे चंदन खडे, बेल कलुंबी गोरी हीयो हेठ कर, कर मन सांई हाथ संबेसडो, तो मिलसां सो-सो घार ।। - १५०-११ धीर करार । -१३६-३३७ - १५०-१२ www.jainelibrary.org

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