Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 03
Author(s): Lakshminarayan Dixit
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 313
________________ २४४ ] परिशिष्ट ३ माजी उमरी अतरररा -१८०-११८ प्राडा कसोया कामनी, नण-सरासर देत । धावा मचीया धो (ढो)लीया, संण सवादी लेत ।। -११६-२४६ प्राडा पडसी दोहडा, जद केहा जणां। -१६४-४ प्रांबो मरवो केवडो, केतकीयां भर जाय। सदा सुरंगो चंपलो, प्राज विरंगो काय ॥-१५६-५३ प्राभे अडंबर बादली, बीज चमको होय । तिण बोरीयां कचू कसं, पोवन राषे नोय ॥ -११६-२२६ प्राधला दलामैं म्यारा, प्रकासीयो रीत एही। सांवळा वादलां माहे, नकासीयो सूर ॥ -१७०-१ प्रासू लूधी सेणरी, धणीयण पास लिगार बे। पोठ पराई राचव, जोधत छंडे लार बे। -११८-२४३ उठियो कुंबर वीवालूबा, भीजे राजकुंवार । राजा रुठेगो गांव ले, नही तर घोडी त्यार ।। -११७-२३६ उत्तम जननी प्रीतड़ी, कोणहीक वेला होय थे । ते छोडी नै धोसर, ते जग मूरष होय बे॥ -८३-८५ उत्तम जीव हवे जिके, जिण तिण सं उपगार । करतां न जाणं हांण बे, राषे सूष परकार बे।। -१०-१८३ उतावल कीया अलूझीये, सन सनै सहु होय बे। माली सींचे सो घड़ा, रीत पाया फल होय बै॥-६६-१४१ उमरावां बरज्या घणां, राज न मान्यो कोय बे। बोधना लेख हुवै तिक, उ टले टलीया टलाय बे।। -६०-५१ उर-थल थोडा ऊफीया नींबूण चैयारां । --१७१ नो० ऊंडे पड़वे पैस, पिवसुं पंजां मारती। सुंमाणसीया एह, चूंघे लागा धोलउत ।। -१६२-७४ ऊँडो गाजे ऊतरा, ऊंची वीज खिवेह । ज्यं ज्यं सरवणे संभलु, त्युं त्युं कपै देह ।। -१५६-५० ऊणां सहेल्यां प्रागला, म्यारा हुं तिल-मात ॥ -१६६.४७ कवां बरस बादली, लूंबा-झूबा लोर ।। -१७८-८८ ए प्राणी रात, षबर पडसी मूझ परी। वैरण हंदी वात, परी म याज्यो पेलणा ।। -११६-२३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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