Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 03
Author(s): Lakshminarayan Dixit
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 287
________________ २१८ ] परिशिष्ट २ (क) क्रमाङ्क पृष्ठाङ्क पद्याङ्क क्र० पृ० प. १५६ प्रोहित बोल्यो दिल प्रघल ३१-२३८ १५७ प्रोहित ममत पछाणियो ३४-२५४ १५८ प्रोहित रसक प्रजंक पर २५-२११ १५६ प्रोहित रांण प्रचंडका ३१-२४२ १६० प्रोहित सुरभै पेमसं (अर्द्धाली) २०-१६१ १६१ प्रोहित होरा कर पकड़ ४८-३७५ १६२ प्रोहित हीरां पेषीयो ३५-२६० १६३ पर घर करां न प्रीतड़ी २०-१६० १६४ पहुंची नग विविधि। प्रगट २२-१८३ १६५ पाव पोस मोती प्रगट २३-१८८ १६६ पित्रकारी कत जोर पर ४५-३३० १६७ पिचकारी झटकत प्रगट ४५-३२८ १६८ पिचकारी धारां प्रगट ४५-३२९ १६६ पिचकारी मो ऊपर ४५-३२७ १७० पिचकारी लगि पीवकै ४५-३३८ १७१ पीछोले प्राई प्रगट १५-१२३ १७२ पीतम कारण पदमणी ४७-३५६ १७३ पीतमक उर सेझ पर ४६-३८७ . १७४ पीतम प्यारो भेझ पर ४६-३८५ १७५ पुरुष प्रीत हीरां तलफ ६-४४ १७६ पंकजमुष पर लीलपट ४-२७ १८५ बनडाको देष्यो बदन ४-२८ १८६ बले येम कहियों बचन ४४-३२५ १८७ बहत अगाडी बीरबर २४-१९८ १८८ बाटो तोने जीभडी ४७-३६१ १८६ बालक लीला बालपण ३-२० १६० बिध-बिध कहियो बयण ४४-३२४ १६१ बिलकुल बोल्यो मुष वचन २६-२२५ १९२ बिहद लोह बंजाययो ४०.२७७ १६३ बोल्यौ प्रोहित बागमैं १६-१३० १९४ बोल्यौ प्रोहित बेलिया १६-१३१ १६५ बोल्यौ प्रोहित बेलिया १०-७६ १६६ बोल सुणत तब केसरी २०-१६१ १६७ बंक भुकट बोली बयण ४६-३४६ १९८ बंध पकड़ ल्याय बिहव ४०-२७५ १६६ भली बात प्रोहित भणे ३१-२४४ २०० भाभी इम कहियो बयण ४-२५ २०१ भाभी डोलत बहत भर ४३-३१३ २०२ भामण प्यारी अंक भर ४६-३८६ १७७ फोकै मन फेरा लीया ५-३२ १८ फुल अपार प्रजंक फब ४६-३८० २०३ म्रगमद कुंकुम चन्द मिल २२-१७८ २०४ मदनातुर मेरो मरण ६-४८ २०५ मधुर बचन छवि चंद मुष ४-२२ २०६ मिणधारी छिबतै उछर १८.१३६ २०७ मिले कसुंबा माजमा ४६-३८४ २०८ मीठा बोलो वचन मुष ४८-३७२ २०९ मुगत मंग सिंदूर मिल २२-१७६ २१० मै तो कागद मेलयौ ४०.२७८ २११ मैनु घणी विमुढ मंन ४७.३६० २१२ मोद न हीरा कुंद मन ५-३३. २१३ मो पणवृत राषो मुदे ४०-२७६ २१४ मो मन मलियो बालमा २६-२२४ १७६ बकि चितवन तन बदन ४३.३०८ १८० बचन अफटा बहै गया ४७-३५४ १८१ बणियाणी चातुर घणी २०-१५९ १५२ बणी सहेली बाडियां २७-२२८ १८३ बतलास्यां म्हे बालमा ४७-३६७ १८४ बन उपवन फूलत विषम ४२-२६७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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