Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 03
Author(s): Lakshminarayan Dixit
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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२१६ ]
परिशिष्ट २
क्र०
क्रमाङ्क पृष्ठाङ्क पद्याङ्क ।
पृ० प० ७४ कामल भुज प्रणवट किनक,२२-१८२
७५ कामातुर होरां कहै, ६-४१ ४४ प्रांनन सषियांको अवर, १५-१२४ ७६ किनक मुद्रिका बज्रकण, २२-१८४ ४५ प्रांबा पोहो रत छबि अधिक,४२-२६९ ७७ कुच ऊपजे काची कली, ३-१६
७८ केसर अग्न कपूरको, ४३.३१० क
७६ केसर होद भराय कर, ४३-३०३
८० केहर बतलायो कना, ६-६८ ४६ क्रोध कर राणौ कह्यौ, ३१-२३८
८१ केहर येक कराल, ९.६६ ४७ कए बडारण केसरी, ४४-३२०
८२ कोमल तन पर जोर कर, ४६-३४६ ४० कटंक बिकट घण थट कियां,३२-२४५
८३ कोयल सुर मिल नायका, १५-१२६
८४ कंज कंठ वट किनक, २२.१७६ ४६ कमर कटारी असी हथा, २४-१६६ ५० कर गमण तब केसरी, ४५-३३५
५५ कंज प्रफुलत सोभ कर, ४२-२६८ ५१ कर जोड्या राधाकृष्ण, २०-१५७ ५२ कर जोडी सुभटां कह्यौ, ३१-२४३ ५३ कर जोडी हीरां कहैत, २६-२२१
८६ गड गड बडी गुलाबको, ४५-३३१ ५४ कर जोडे येकण कह्यौ, १०-७३
८७ गहर प्रजंक सुगंध प्रति, २४-२०६ ५५ करणफूल मोती कनक, २२-१७७
८८ मैदा छटक गुलाबका, ४६-३५१ ५६ कर पकडी इम कहत है, ४६-३४२
८६ गोटत गेंद गुलाबको, ४५-३३२ ५७ कर फैटो तजि कमरको, ४७-३६६ ५८ कर हीरा डोली करग, ४३-३०५ ५६ कर हुंता पार्छ करे, १८-१४० ६० करि गमरण अब केसरी, १८-१४५
९० घणहर जल बरषत घुरत, ६-४६ ६१ करो षमो हीरा कहै, ४८-३७४
६१ घणे परकार हीरां अठ, ७-५३ ६२ कला प्रकासत दीपकी, . ४६-३८२ ६३ कह्यो प्रापको धायकू, ६४ को बडारण केसरी, ४५-३४० ६५ कह दीजे तु केसरी, २०-१६७ ६२ चकोर चाहे चंद, २३-१६२ ६६ कहियो हीरां इम कथन, ४५.३३६ ६३ चत्र मास नीला चिरत, ४१-२८६ ६७ कहु ता दीनो कुरब, ४६-३८३ ६४ चमकण लागी चंद्रिका, ६-५१ ६८ कहूँ छंद चंद्रायेणा, ४६-३६२ ६५ चमकत बीज अचाणचक, ६-४७ ६६ कहैत बडारण केसरी, १६-१५६ ९६ चले प्रोहत नाव चढ़ि, ३१-२४० ७० कहै दीज्ये तु केसरी, ४५-३३४ ६७ चववह बरस अधिक चित, ४-२१ ७१ कहै बडारण केसरी, ४५-३३६ १८ चहुँ तरफां डगर प्रचल, १०-७७ ७२ कहै बडारण केसरी, ४६-३५२ ___EE चहवांण चढे चापड़े, ४०.२८१ ७३ काई नाव क जातिय्या, १८-१४६ । १०० चातुर बोल्यो मुष बचन २५-२०७
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