Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 03
Author(s): Lakshminarayan Dixit
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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२०६ ]
परिशिष्ट १ हंज सरोवर हज पीए, बगा छीलर पीयंत ।
बग्गां केतो पासरो, हंजा सरता कंत ॥ ६६ वार्ता- रीसालू बोल्यो नहीं। त्यारे धारा स्त्री तिहाथी चाली । मेडी थकी ऊतरता झांझर वाग्गे । त्यारे रीसालूइं जांण्य-देषू किहां जाए छे ? कन्या चाली थकी कुमतीया सोनारने घरें गई । कुमतीयो सोनार घरमें सूतो छ । तिहां सोनारनो बाप सुतो छे। तिहां जई धारा स्यू कहे छदूहा- तू बी चूइ टबूकडे, भींजे नवसर हार ।
चीर पटो(ढो)ला ढह पडे, मूरषरे दरबार ।। ७० सोनीनो बाप कहे छदूहा- राजा रूठो स्यू करे, लीये लाष बे चार ।
ऊठो पुत्र सुलष्षणा, माणिक भोंजे बार ॥ ७१ वार्ता- इम कही स्त्रीने मांहिं लीधी । भोगवतां निद्रामें प्रभात होइ गयो । दूहा- प्रह फूटो प्रगडो भयो, धूप्रो चलो रें। ऊठ कुमतीया अनुमति, घे जिम जाबू घरें ।। ७२
सोनार कहे छेपाय पहिरी चापडी, ले बेंडो तरवार ।।
हो राजारो अोलगू, चलो जा दरदार ॥ ७३ वार्ता- वेस करी चाली त्यारें रोसाल बोल्योदुहा- पावडीयां चटकालीयां, क. रलक्या केस । रीसालूरी गोरीयां, किणे फिराव्या वेस ।। ७४
कन्यावाक्यं वीरां कांइ वरांसीयो, साव सारी पांमू प्रां । उंट विछटा रावला, अमें नासेटु हूनां ॥ ७५
रीसालूवाक्यं रातें करहा न छू टोइं, दोहें तारा न होय । फिठ गमार तुं गोरडी, वर किम वीरा होय ॥ ७६
कन्यावाक्यं काठो तोडातां जरणे, झोरां च्यारे दंत। हूं राजारो अोलगू, तू किणांरो कंत ॥ ७७
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