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[ ४. ] गई कहानियों के लिए वात के रूप में प्रचलित रहा है और इस साहित्य का अपना विशिष्ट स्थान भी है। यहाँ की ऐतिहासिक व सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप प्राचीन राजस्थानी का अधिकांश साहित्य वीररसात्मक है परन्तु अन्य रसों के साहित्य की भी इसमें कमी नहीं है। यदि हम वातों को ही लें तो वीर-चरित्रों को लेकर लिखी गई वातों के अतिरिक्त शृंगार, भक्ति, धर्म, नीति और उपदेश आदि विविध विषयों को लेकर अनेक कथाओं का निर्माण हा है। यहाँ की वीरगाथाओं और कहानियों ने द्विजेन्द्रलाल राय तथा रवीन्द्रनाथ ठक्कुर जैसे महान् साहित्यकारों को भी प्रभावित किया है तथा उनका महत्व सर्वविदित है ही। परन्तु शृंगारात्मक वातों की जो विशिष्ट देन यहाँ के साहित्य को है उस पोर अद्यावधि अन्य प्रांतों के साहित्यकारों का ध्यान बहुत कम प्राकषित हो पाया है। अतः इस बहुमूल्य साहित्य का परिचय साहित्यानुरागियों को देने की दृष्टि से ही प्रस्तुत पुस्तक में ५ वातों का संकलन किया गया है ।
पांचों ही वातें प्रेमविषयक हैं, परन्तु प्रेमसम्बन्धो कथाओं में भी जो वैशिष्टय यहाँ देखने को मिलता है उसको ध्यान में रख कर वे विविध प्रकार की प्रतिनिधि प्रेमकथाएं यहाँ प्रस्तुत की गई हैं जिनमें कहीं स्वकीया नायिका का निश्छल प्रेम है तो कहीं परकीया की कामातुरता, कहीं नारी के कुटिल चरित्र की अनेकरूपता है तो कहीं नारी व पुरुष की काम-भावनाओं का गूढ चित्रण यहाँ की सामाजिक पृष्ठभूमि में देखने को मिलता है।
नागजी - नागवन्ती की वात में जहाँ पुरुष और नारी का एकनिष्ठ प्रेम मार्मिकता के साथ चित्रित है वहाँ बगसीराम और हीरां की वात में अनमेल विवाह पर करारा व्यंग्य है । मयाराम दर्जी की बात में जहाँ पूर्व संस्कारों को मान्यता देते हए अतिशयोक्तिपूर्ण शृंगार का वर्णन है तो रिसालू री वात में राजा रिसालू जैसे ऐतिहासिक व्यक्ति के साथ नारी के विभिन्न रूपों और यौन सम्बन्धों का अजीब चित्रण है। प्रेमलालछी की बात में नारी के कुटिल-चरित्रों का सूक्ष्म दिग्दर्शन ही नहीं अपि तु पुरुष की काम-पिपासा को नारी-सौन्दर्य द्वारा तप्त करने के विकल्प भी वर्णित हैं। इन सभी कथाओं में एक और नारीपात्रों की सुन्दरता और चतुराई दिखाई गई है तो दूसरी ओर पुरुष की विवशता तथा सामाजिक मान्यताओं एव रीति-नीति पर भी अच्छा प्रकाश डाला गया है। इस प्रकार की प्रेमकथाओं का सर्वाङ्गीण अध्ययन तो तभी संभव है जब कि हस्तलिखित ग्रन्थों में बिखरी हुई सामग्री ससम्पादित होकर प्रकाश में आ जाती है। परन्तु, इन कथाओं के आधार पर प्रेमकथात्मक-साहित्य की कुछ विशेषताओं का अनुमान तो लगाया ही जा सकता है ।
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