Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 03
Author(s): Lakshminarayan Dixit
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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परिशिष्ट १
। २०३ फूलवतीवाक्यं तें प्राण्यो में भषीयो, मृगां हंदा माय ।
क्रपी मोरो पिउ मारीयो, मरू कटारी षाय ॥ ५३ वार्ता- त्यारे रीसालू बेठी मेलीने चाली नीसरयो । त्यारे फूलवती कहे-- मुझने मारीने जाय। दूहा- साद करी करी हूँ थकी, चल चल थक्का पाव ।
रीसालू ऊभो न रहे, वेरी वाल्यो दाव ॥ ५४ वार्ता- रीसालू तो चाली नीसरयो। फूलवती प्रावी ठिकाणे बेठी । हवे रीसालो आगे चाल्यो जाए छ । एतले एक जोगी प्रागें मिल्यो। जोगीने देषी रीसालू झाड ऊपरें चडी बेठो-देणूं, जोगी क्या जावे छे ? त्यारे योगीइं तलाव ऊपरें नाही साथलमेंथी एक जोगणी काढी। ते देषी रीसाल अपना मनमें
कहे।
दहा- योगी योगी योगीया, प्रायसडा सधीर ।
ऊंची योगरण पातली, काढो साथल चीर ॥ ५५ , वार्ता- एहवू रीसालूइं अपना मनमें जांणी तमासो देष छ । ओ जोगणीइं जोगीना कह्याथी षावू को● । षावू जमी जोगी सूतो। त्यारे जोगणीइं प्रापणी झांघ माहेथी एक जोगी बालक जंगनाथ नांमें काढयो। पछे भोग भोगवी प्रो पुरुषनें पाछो साथल में घाली में अपना मोटा जोगीने जगाड्यो । ऊठो स्वामी ! हवे सारी पठे जमो। जोगी कहे-जोगणी ! तो सरषी कोइ सती नहीं । बाजो संकेली हाली नीसरयो। त्यारे रीसालू जइ प्राडो फिरयो । चालो सामीजी !
आज बाबानो भंडारो छ । योगोनें तेडी फूलवतीने पासें लाव्यो। रीसालू फूलवतीनें कहे-लाडूया करो। सांमीनें जमाडीइं फूलवतीइं लाडूया करया। थाल भरी सांमी पासें लाडू लाव्यो । सांमी कहे-बाबा ! एता लाड क्या करूं । में तो अकेला छ; में पण लाडू षाऊं, तमे पण लाडू षायो। रीसालू कहे-तमे षानो अनें तमारा बे जीव भूषे मरे, ते पण अमने धरम नहीं। योगी कहे-में तो एकला ह । रीसालू कहे-जोगणी काढो, नही तर मायूं वाढतूं । त्यारें मरणभये जोगणी काढी। वली जोगणोपासें भयें करी बीजो बालो जोगी कढाव्यो। योगी बीजा जोगीने देषी तमासो पाम्यो। बेइ जोगी माहो-मांहें लड्या। यो कहे, जोगण माहरो, प्रो कहे माहरो । त्यारें रीसालू कहे-लडो मां । रीसालू जोगणीनें कहे -तुने कुंण प्यारो छे ? जोगणो कहे-नाहनो जोगी प्यारो। तेहनें जोगणी देइ सीष दीधी । बूढो जोगी कहवा लागो-तें तो भंडो काम करचो, हवे
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